
– बृजेश विजयवर्गीय-

(स्वतंत्र पत्रकार)
मोरवी में मच्छू नदी पुल हादसा गंभीर प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है कि 134 लोगों की जिंदा ही जल समाधि हो गई। हमारे यहां दुर्भाग्यपूर्ण हालात यह है कि हम इस प्रकार के हादसों के अभ्यस्त हो गए लगते है। प्रशासन नाम की कोई चीज लगता है देश में है ही नहीं। विगत वर्ष पंजाब में दशहरा पर रेल लाईन पर लोगों की भीड़ को रौंदते हुए ट्रेन निकल गई। मंत्री और पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में ऐसे हादसे हो जाते है। बाद में आपदा प्रबंधन, मुआवजा, रस्मी तौर पर एफआईआर और नेताओं की घड़ियाली सांत्वनाऐं हादसो को नियंत्रित नहीं कर पा रही। हर दुर्घटना के पीछे लापरवाही तो होती ही है। लेकिन सबक सीखने की फुर्सत किसी को नहीं। आम तौर पर हम देखते है कि धार्मिक आयोजनों, मेलों और जुलुसों की भीड़ पर किसी का नियंत्रण नहीं होता और प्रशासन की समूची पाबंदियां और निर्देश हवा हो जाते है। भारत जैसे देश में उच्छृंखल जनसंख्या बहुत ज्यादा है, वहां इन हादसों को रोकने का कारगर प्रबंध होना चाहिए। प्रशासन को सख्ती करने की छूट नहीं देने का नतीजा है कि भ्रष्टाचारी खुले आम निर्दोष लोगों की जान के दुश्मान बन जाते है। मोरवी हादसे में पुल दुरूस्तीकरण एजेंसी के भ्रष्टाचार की खबरें आ रही है। कब तक हम मानवीय गलती मान कर इस प्रकार के हादसों को झुठलाते रहेंगे? मोरवी के बहाने हम कोटा में क्षैत्र में चम्बल नदी में हुई बारात दुर्घटना में 9 लोगों की मौत तथा कालीसिंघ नदी में हुए हादसों को भूल नहीं पाते।
कोटा में दशहरा मेले में आतिशबाजी को देखने के लिए होने वाली भीड़ डराने के लिए पर्याप्त है जो कि संपूर्ण पुलिस प्रशासन की देखरेख में होती है। सैकड़ों उदाहरण है कि सरकार के लोग खुद आयोजनों में भागीदार होते है।सड़क हादसों की तो गिनती ही नहीं है। देश में हजारों लोग यूं ही काल कल्वित हो जाते है। जरूरत है भीड़ प्रबंधन पर नऐ सिरे से विचार करने की।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
मोरवी मे मच्छू नदी के हैंगिंग ब्रिज की घटना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है.इसमें मरने वालों को ले देकर शांत कर दिया जायेगा,और सरकारी कामकाज अपने ढर्रे पर चलता रहेगा, आज की प्रजातांत्रिक व्यवस्था का यह सटीक विश्लेषण है