
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
सितारों भरी कहकशाॅं* कुछ नहीं है।
मुक़ाबिल* तेरे आसमाॅं कुछ नहीं है।।
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जहाँ माल ओ ज़र हो वहाॅं चैन कैसा।
वहीं पर सुकुॅं है जहाॅं कुछ नहीं है।।
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कहाॅं से लिखूॅं शेर हमदो सना* के।
न ताक़त क़लम में ज़ुबाॅं कुछ नहीं है।।
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अब ऑंखों में ऑंसू भी सूखे पड़े हैं।
इधर देख ज़ालिम यहाॅं कुछ नहीं है।।
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मैं ज़ाहिर* में जो हूॅं वही मेरा बातिन*।
अयाॅंं* मेरा सब कुछ निहाॅं* कुछ नहीं है।।
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ये मंदिर ये मस्जिद के झगड़ों को छोड़ो।
कि खाओ कमाओ मियाँ कुछ नहीं है।।
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गले से मिले लोग धोखा हैं जैसे।
ज़मीं से मिला आसमाॅं कुछ नहीं है।।
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सियासत के मारो यहाॅं क्या मिलेगा।
यहाॅं बस ग़ज़ल है यहाॅं कुछ नहीं है।।
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मेरी आरज़ू इससे आगे है “अनवर”।
वतन के लिए जिस्मो जाॅं कुछ नहीं है।।
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कहकशाॅं*सितारों की लड़ी आकाश गंगा
मुक़ाबिल* मुक़ाबले में
हमदो सना* ईश्वर की तारीफ़
ज़ाहिर*दिखने वाला बाहर
बातिन* छुपा हुआ भीतर
अयाॅं* नज़र आने वाला
निहाँ* यानी छुपा हुआ
शकूर अनवर
सच बयां करती आपकी खूबसूरत पोस्ट