
– विवेक कुमार मिश्र-
छाया रुकी रहना कहीं जाना नहीं , ऐसे कह रहे थे जैसे कि छाया सुन रही हो । क्या पता छाया सुनती हो और जो कह रहा है उसे भरोसा हो कि उसकी बात तो छाया सुनेगी और कहीं नहीं जायेगी । अब छाया बाग बगीचे तक सीमित नहीं है अब तो छाया फ्लाईओवर के नीचे मिलती है और खूब मिलती है । यह छाया की जगह है और इधर उधर से आ रहे लोगों का दल यहां रुकता रहता है । चलते चलते देखता हूं कि किसी भले मानुष ने फ्लाईओवर के नीचे पानी के कैम्पर रखवा दिए हैं और उसमें पानी है की नहीं इसकी बराबर से देख-रेख होती रहती है । आते जाते राहगीर पानी पीते हैं । पानी देख आप से आप प्यास लग जाती और इस गर्मी में गला तर कर ही आगे बढ़ना चाहिए । आते जाते राहगीर से लेकर इन दिनों में बहुत बड़ा एक कामकाजी वर्ग ऐसा भी है जो फिल्ड में काम करता है जैसे कि डिलेवरी व्वायज। इस गर्मी में ये दूर – दूर तक अपनी सेवा देने जाते रहते हैं । इन्हें पता है कि फ्लाईओवर के नीचे पानी मिल जायेगा । थोड़ी राहत और छाया मिल जायेगी तो ये बड़े आराम से यहां रुककर पानी पीते हैं और आराम कर फिर अपनी मंजिल पर आगे बढ़ जाते हैं । यहां पानी के कैम्पर की व्यवस्था एक जरूरी व्यवस्था की तरह है और इन दिनों में इससे बड़ी कोई और सेवा नहीं हो सकती है । संसार चक्र में सांसारिकता भी छाया को खोजती रहती है। यह बराबर से देखने में आता रहता है कि आदमी को कोई काम धाम न भी हो तो भी वह छाया देखकर रुक जाता है और छाया के प्रभाव में संसार की गतिविधियों में ऐसे शामिल हो जाता है कि मत पूछिए। वह संसार से संवाद करते – करते छाया के राज में चल रहा होता है । यह छाया जीवन की होती है हमारे आसपास की होती है –
देखो कितनी गर्मी पड़ रही है
सीधे आसमान से धूप आ रही है
इस धूप से छाया ही बचायेगी
छाया पानी और दाना मिल जाये
फिर किसी को कुछ भी नहीं चाहिए
इस समय रोटी से ज्यादा
पानी की जरूरत महसूस होती है
रोटी न मिले तो चल जायेगा
पर पानी समय समय पर मिलता रहे
फिर मन आत्मा को सुकून मिल जाता
इसीलिए वह कहता है कि
छाया यहीं रहना
कहीं जाना मत , तुम्हारे भरोसे ही तो
चल रही है दुनिया इस चलती हुई दुनिया में
छाया है , पानी है , दाना है
इन सबके साथ दुनिया भर के
आदमी आते रहते हैं और छाया की दुनिया में
खो जाते हैं छाया ही रचती है सुकून
इस सुकून के साथ आदमी अपनी
दुनिया को जीता चला जाता है
छाया के रंग में चाय पानी और दाने के संग
आदमी रच देता है सुकून की दास्तान
यह सब इस गर्मी में होता है छाया के साथ
इस छाया के रहते सभी अपने रंग में आ जाते ।
इस गर्मी में पानी और छाया ही तो सब कुछ है। यदि छाया नहीं रही तो आदमी से लेकर जीव जंतु सब कहां जायेंगे। सबका हाल बेहाल है । सब थोड़ी सी छाया देखकर रुक जाते हैं । तालाब की पाल हो और आसपास कुछ पेड़ हो एकाद वरगद कुल के हो फिर देखिए कैसे इलाके भर के चरवाहे , अपने पशुधन के साथ यहीं बैठ जाते बातें करते दुनिया जहान की बातें चलती सब अपनी अपनी दुनिया खोल कर रख देते । सबके पास हर समस्या का समाधान होता और बातों के बीच में गर्मी को ऐसे भुला देते की गर्मी हो ही नहीं । यहीं तो जिंदादिली इन सबको यहां खींच कर लाती । पूरा इलाका यहां एक तरह से होता । बेहाल आदमी और पशु दोनों छाया पानी देख पेड़ों के आसपास आ जाते । यहां सभी को राहत मिल जाती । यह राहत किसी भी खान पान की महफ़िल से भारी होती । यहां कुछ नहीं होता बस छाया और पानी ही आंखों को मन को सुकून दे देते । किसी को कुछ नहीं चाहिए । सब ऐसे ही छाया के भरोसे रह रहे हैं। यहां कोई किसी का हो या नहीं पर एक बात तो तय है कि सब छाया के हैं ही । छाया के राज में संसार भर के लोग अपना अपना राज खोजते रहते हैं । छाया के साथ पानी मिल जाये फिर इससे बढ़कर और क्या हो सकता। यहीं तो इन दिनों की सेवा है । कुछ ऐसा सोचते करते चलें जिससे किसी न किसी को कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिले । आपका काम अकेले का न हो न ही केवल आप अपने लिए ही करें यदि अन्य के लिए कुछ भी करते हैं तो वह किसी न किसी रूप में आपके लिए ही हैं । इसलिए जनहित में सबके लिए सोचते हुए कुछ करते चलें फिर इससे बढ़िया कुछ और हो ही नहीं सकता।
– विवेक कुमार मिश्र
कवि – आलोचक
लेखक हिंदी के प्रोफेसर हैं
पर्यावरण के संरक्षक पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने ज्यादातर वृक्षों का सर्वनाश कर दिया, शहर में लगने वाले प्याऊ कहीं खो गए हैं इसलिए आमजन फ्लाई ओवर और कैम्पर का सहारा ले रहे हैं, यही कथानक डाक्टर विवेक कुमार मिश्र ने परोसा है