हम सियासत समझ नहीं पाये। लोग करते रहे शिकार हमें।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

बख़्श दे फिर वही वक़ार* हमें।
ज़िंदा क़ौमों में कर शुमार हमें।।
*
यूॅं मयस्सर* हुई बहार हमें।
फूल बनकर मिले हैं ख़ार हमें।।
*
फिर वही गुम रही* का आलम क्यूॅं।
क्यूॅं उतारा नदी के पार हमें।।
*
क्यूॅं खिलाता है मात पैदल से।
क्यूॅं दिया रुतबा ए सवार हमें।।
*
जिस्म ओ जाॅं क्यूॅं सजाये ज़ख़्मों से।
दिल दिया वो भी क्यूॅं फ़िगार* हमें ।।
*
हम ही हर दौर में हुए मसलूब*।
क्यूॅं मिली है हमेशा दार* हमें।।
*
हम सियासत समझ नहीं पाये।
लोग करते रहे शिकार हमें।।
*
डूब जाऍं न हम कहीं “अनवर”।
अपनी कश्ती से मत उतार हमें।।
*

वकार* वैभव
मयस्सर* मिलना प्राप्त होना
गुम रही*भटकाव
फ़िगार* ज़ख़्मी, घायल
मसलूब* सलीब पर लटकाये गये
दार* सूली

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Neelam
Neelam
2 years ago

????????????????