
-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
कोटा। फागुन का महीना हो और टेसू अथवा पलाश की चर्चा नहीं हो! आजकल पलाश के पेडों पर फूलों की बहार है। संस्कृत कवियों ने इसे वसंत के आगमन का प्रतीक माना है। जमीन पर बिखरे फूलों को दूर से देखो तो यही अहसास होता है मानो अंगारे बिछे हों। टेसू और पलाश के अलावा इसके दो और नाम मिलते हैं। आम बोलचाल में ढाक और साहित्य में किंशुक। किंशुक नाम इसलिए पड़ा कि इसका फूल आगे से तोते की चोंच की तरह मुड़ा हुआ होता है। उसे देखकर संदेह होता है कि कहीं यह तोता तो नहीं।

पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (Butea Monosperma) है। आयुर्वेद के अनुसार पलाश के फूल से मधुमेह, आंख से संबंधित बीमारियों जैसे मोतियाबिंद, एनीमिया, गुर्दे की पथरी, मूत्र संबंधी विकार और मूत्राशय में दर्द का इलाज करने में लाभ मिलता है।

वास्तु में पलाश के फूल के कई लाभ बताए गए हैं। कहते हैं इसे घर में लगाने से धन में वृद्धि और खुशहाली आती है। वास्तु के अनुसार इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस पेड़ के फूल बहुत ही चमत्कारी होते हैं। पलाश के फूल को घर में रखने से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है।

आयुर्वेद में इसका प्रयोग इसके बीज को पीस कर पेट के कीड़ों को नष्ट करने में किया जाता रहा है। पलाश के फूल में एसट्रिनजेंट गुण पाया जाता है जो पेट की समस्या में आराम पहुंचाता है।
मध्यप्रदेश और गुजरात के जंगली इलाकों,रेल्वे लाईन के आसपास प्लास के पेड़ बहुतायत से पाए जाते हैं,बसंत ऋतु में पेड़ों में लाल फूल खिलने से जंगल ऐसे लगते हैं जैसे आग लगी है,प्लास के पत्तों से दोना पत्तल बनाए जाते हैं