अपने दुखों के गहरे समन्दर के दरमियाँ। ख़ुशियों की अपनी नाव डुबोते हुए से हम।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

अपना ही बोझ काॅंधों पे ढोते हुए से हम।
सहरा* में अपने आप को खोते हुए से हम।।
*
अपने दुखों के गहरे समन्दर के दरमियाँ।
ख़ुशियों की अपनी नाव डुबोते हुए से हम।।
*
साज़िश* कहें इसे या मुक़द्दर को दोष दें।
बेदार* है ज़माना तो सोते हुए से हम।।
*
मस्जिद की सीढियाँ हों कि मन्दिर का द्वार हो।
सद्भावना के फूल पिरोते हुए से हम।।
*
ज़ुल्मो-सितम* की फ़सल गले काटती हुई।
अम्नो-अमाॅं* के बीज ही बोते हुए से हम।।
*
मस्ती में चूर तुम कहीं बज़्मे-निशात* में।
दुनिया के ग़म में पलकें भिगोते हुए से हम।।
*
अपना ही क़िस्मतों का सितारा नहीं बना।
“अनवर” ज़मीं पे ख़ाक ही होते हुए से हम।।
*

सहरा* रेगिस्तान
साज़िश*षडयंत्र
बेदार*जागृत जगा हुआ
ज़ुल्मो-सितम*ज़ुल्म अत्याचार
अम्नो-अमाॅं*अमन चैन शांति
बज़्मे निशात* ख़ुशियों की महफ़िल

शकूर अनवर
9460851271

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अंजुमन 'आरज़ू'
अंजुमन 'आरज़ू'
2 years ago

क्या कहने वाह वाह वाह