– विवेक कुमार मिश्र-

कुछ से कुछ
हो जाने का भाव
आदमी को
कुछ अधिक बना देता है
कुछ से कुछ
अधिक की खोज करते
चढ़ गये कुछ सीढियां
और कुछ सीढियां
भुलाकर भी चल पड़े
कुछ सीधे – सीधे
सीढियां चढ़ गये
कुछ के लिए
कहीं नहीं होती सीढियां
कुछ स्वयं की
सीढ़ियां गढ़ते रहते हैं
नहीं करते इंतजार कि
कोई उनकी भी
सीढियां गढ़ेगा
स्वयं द्वारा
गढ़ी गई सीढि़यों पर
चढ़ने का आत्मविश्वास
गजब का होता
कैसे आदमी
सीढ़ियों पर चढ़ता है
एक – एक पांव धरते
आसमान को ऐसे देखता कि
एक दिन
आसमान पर चढ़ जायेगा
अक्सर वे चढ़ जाते हैं
खुशियों की सीढ़ी पर
जो अपने लिए
खुद सीढियां बनाते हैं
खुद कदम – दर – कदम चढ़ते हैं
और एक दिन
दुनिया की ऊंचाइयों से
देखते है संसार को ,
सीढ़ियों को और अपनी उड़ान को।
– विवेक कुमार मिश्र
आचार्य – हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002