आलोचक कबहुं न राखिए,पड़ौस में बसाय। कितनौं हूं करि लेओ, उन्हें मजा नहीं आय।।

whatsapp image 2022 10 20 at 09.33.54

✍️ “मजा नहीं आया” लाइलाज बीमारी 

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

हमारे एक मित्र हैं उनसे कभी भी कुछ भी पूछिए, उनका एक ही उत्तर रहेगा, वैसे तो सब ठीक है पर #मजा नहीं आया। अभी कुछ दिन पहले हम चाय पी रहे थे, उसी समय एक मित्र का आना हुआ जो रिजर्वेशन करवा कर लौट रहे थे, व्यवस्थाओं पर झल्लाए हुए थे। उन्हें शांत किया और चाय की पूछा, तो बोले हां यार! कुछ नाश्ता भी करवा देना थोड़ी भूख सी लगी है। श्रीमती जी भी पाककला में निपुणता दिखाते हुए कुशल गृहिणी की तरह, तुरंत चाय के साथ आलू की कचौड़ी बना कर ले आईं। श्रीमती जी ने वैसे ही ( प्रशंसा सुनने की इच्छा से ) पूछ लिया, भैया कचौड़ी कैसी बनी हैं? मित्र तुरंत बोले वैसे तो ठीक है, साथ में गर्म मसाले वाली आलू की सब्जी और होती, तो मजा आ जाता। मैं तो जानता था, श्रीमती जी का सामना एक दो बार ही हुआ था। मित्र के जाने के बाद, अब मैं श्रीमती जी को समझा रहा था कि मित्र दिल का बहुत अच्छा है। वो बोली क्या खाक अच्छा है, जब मजा नहीं आया तब तो छः कचौड़ी डकार गए, अगर मजा आ जाता तो क्या करते? मैं भी क्या कहता। ये एक लाइलाज बीमारी है, “मजा नहीं आने की।” इसका कोई उपचार भी नहीं है। पड़ौस के बच्चे के बोर्ड परीक्षा में 95% मार्क्स आए, हमने शाबासी दी और कहा वाह! बहुत बढ़िया। साथ वाले भाई साहब बोले, क्या बहुत बढ़िया? आजकल तो 100% का जमाना है … मजा नहीं आया, थोड़ी और मेहनत करते। बच्चे का मुंह जरा सा हो गया। अब बताइए इनके मजे के लिए क्या किया जाए, जबकि खुद का बच्चा 75% से ऊपर नहीं आया कभी। हद हो गई जब ऋषि सुनक ब्रिटेन में प्रधानमंत्री चुने गए तो वो भाई साहब बोले, “यार मजा नहीं आया” पहले ही बनता तो बात थी। किसी की अंतिम यात्रा में भी मजा ढूंढ लेते हैं ऐसे “मजे के मरीज।” इतना बुजुर्ग आदमी था भरा पूरा परिवार छोड़ कर गया है, इसका तो डोला सजना चाहिए, विमान निकलना चाहिए था, मजा नहीं आया। क्या किया जाए इस प्रजाति का? ये प्रजाति चहुंओर पाई जाती है। कमाल की प्रतिभा छुपी है इनके अंदर, ये “मजा नहीं आने का” कारण ढूंढ़ ही लेते हैं। खुद के पास किसी भी तरह की वांछित योग्यता हो न हो, दूसरे के लिए बहुत अच्छे जज होते हैं।
ऐसे लोग किसी भी शादी, पार्टी, समारोह में जाएंगे मेजबान ने यदि गलती से पूछ लिया, खाना ठीक है? तुरंत कहेंगे दाल हलवा तो बहुत अच्छा था बस थोड़ा ड्राईफ्रूट कम थे, इसलिए मजा नहीं आया… जलेबी करारी नहीं सेंक रहा था, इसलिए मजा नहीं आया… पानी बताशे तो बहुत अच्छे थे लेकिन पानी दो तरह का ही था, आजकल तो कई फ्लेवर में होता है … मजा नहीं आया। फास्ट फूड की वैसे तो कई स्टॉल थी, एक पिज्जा की भी हो जाती तो मजा आ जाता। ये लोग मजा नहीं आने के दस कारण बता देंगे, और कुछ नहीं तो क्रॉकरी में भी कमी निकाल देंगे, प्लेट भारी हैं या बाउल छोटे हैं या पेपर नेपकिन की क्वालिटी अच्छी नहीं है वगैरह वगैरह… बेचारा मेजबान खिसियाया सा स्वयं को कोस रहा था, पूछ कर गलती कर दी? अब इनसे कौन कहे सारा कुछ आपके हिसाब से तो नहीं होगा न, जिसने भी किया है अपने हिसाब से किया है आप उसका ही #मजा लीजिए। इनका वो हाल है “मुर्गी जान से गई, इनको मजा ही नहीं आया।” इनके मजे के लिए क्या किया जाए समझ नहीं आता। दूसरे के यहां इनके ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं, सारी इंद्रियां जागृत हो जाती हैं, ऐसा होना चाहिए वैसा होना चाहिए और अपने यहां … कुछ याद नहीं रहता, मेमोरी लॉस्ट।
एक शादी समारोह में संगीत का प्रोग्राम चल रहा था। सब अच्छा था लेकिन आलोचक महोदय तो ठहरे आलोचक कैसे मान जाएं? बोले वो तो सब ठीक है लेकिन तुम्हारी बड़ी भाभी का डांस कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था स्टेप ही ढंग से नहीं याद थे उन्हें … “मजा नहीं आया”। लेकिन गलती ये हो गई कि यह समारोह उन आलोचक की पत्नी के मायके में था। पत्नी जी तमतमाई और बोली,“ अब आपके लिए क्या मुजरा करवाया जाए” जो आपको मजा आए? उसके बाद आलोचक पति पूरी शादी में शांत रहे। एक बार हमारे मित्र के बेटे ने उनका पुणे से जयपुर का एयर टिकट बुक करवा दिया ताकि परेशान न हों। क्योंकि उन्हें हमेशा रेल की लंबी थकाऊ यात्रा से परेशानी होती थी। हमने कहा, “अब तो आनंद आ गया होगा?” छूटते ही बोले, कहां यार… आठ हजार की तो टिकट ही थी, और बैठा केवल एक डेढ़ घंटा, जब तक ढंग से सैट होता जयपुर आ गया। पैसा भी खर्च हुआ और “मजा भी नहीं आया।”
अब क्या कहें ऐसे लोगों के बारे में। शायद ये भीड़ से हटकर दिखने की मानसिकता से ग्रस्त हों या या अपने निजी जीवन में असंतुष्ट रहते हों। इनकी पारखी निगाहें कमियां ढूंढ़ने में दक्ष होती हैं, कई बार इनकी ऐसी मानसिकता के चलते रंग में भंग भी पड़ जाता है, और इनकी मासूमियत देखिए इन्हें पता भी नहीं चलता। इससे तो अच्छा है ये अपनी प्रतिभा का उपयोग किसी साहित्यिक विधा में करते तो शायद नामवर सिंह जी को भी पीछे छोड़ चुके होते। इनके अंदर छुपे नामवर सिंह को मेरा बारम्बार प्रणाम। कबीर दास जी का एक दोहा है कि “निंदक नियरे राखिए” लेकिन आज यदि कबीर दास जी होते तो लिखते __
आलोचक कबहुं न राखिए,पड़ौस में बसाय।
कितनौं हूं करि लेओ, उन्हें मजा नहीं आय।।
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

4 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

मजा नहीं आया की लेखिका मनु वशिष्ठ ने एक छोटी सी घटना को अपनी कुशल‌ लेखनी से रोचक बनाकर परोसा है,साहित्य वह विधा है इसमें कुशल चित्रकार कलम के माध्यम से ऐसी कारीगरी कर देता है कि पाठक विचारों, भावनाओं के संगम में गोता लगाने के लिए बाध्य होता है.

Manu Vashistha
Manu Vashistha

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बंधु ????

Sanjeev
Sanjeev
2 years ago

हा हा हा सही लिखा आपने, आजकल यह प्रजाति सभी। के पड़ोस में पाई जाती है, इनसे बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है हा हा हा

Manu Vashistha
Manu Vashistha
Reply to  Sanjeev
2 years ago

हार्दिक धन्यवाद बंधु ????