
-द ओपिनियन-
नए कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कलह से निपटना लगातार चुनौती बढाने वाला साबित होता जा रहा है। दो दिन पूर्व अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के खिलाफ जिस तरह की बयानबाजी की है उससे राजस्थान में पार्टी के अंतर कलह की तस्वीर साफ हो जाती है। कांग्रेस के पास देश में केवल दो राज्यों में सरकार है ऐसे में राजस्थान में यह कलह जारी रहा और आलाकमान इससे चतुराई से निपटने में नाकामयाब रहा तो स्थिति हाथ से निकलते देर नहीं लगेगी। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद से मल्लिकार्जुन खड़गे की कार्यप्रणाली को देख पार्टी समीक्षक राजस्थान के मामले में चमत्कार की कोई उम्मीद नहीं किए है क्योंकि इस अवधि में ही राजस्थान की स्थिति जटिल से और ज्यादा उलझती गई। इसका सबूत गहलोत का पायलट को उस समय गद्दार तक कह देना रहा जब वह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ भारत जोडो यात्रा में शिरकत कर रहे थे।
यह कहा भी जा रहा है कि 4 दिसंबर को कांग्रेस पार्टी की स्टीयरिंग कमेटी की बैठक होगी। खड़गे पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार इस प्रमुख कमेटी की अध्यक्षता करेंगे। तब उनके सामने राजस्थान में पार्टी के आंतरिक कलह से निपटने की प्रमुख चुनौती होगी। राजस्थान का मुद्दा सबसे ज्यादा जटिल है क्योंकि यहां न केवल पार्टी सत्ता में है बल्कि इस राज्य में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव भी होने हैं। राजस्थान में वैसे भी प्रति पांच वर्ष में सरकार बदलने की परंपरा रही है ऐसे में यदि खडगे पार्टी के आंतरिक कलह को दूर करने में विफल रहते हैं तो राजस्थान के भी कांग्रेेस के हाथ से निकल जाने की आशंका है। राजस्थान में कांग्रेस का संकट इसलिए भी बडा है क्योंकि इसकी एक कडी अशोक गहलोत हैं। राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत न केवल पार्टी के कद्दावर और जनाधार वाले नेता हैं बल्कि हाल तक पार्टी आलाकमान के नजदीकी ओर विश्वासपात्र भी रहे हैं। राजस्थान में पार्टी के विवाद की वजह से ही उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनने का मौका नहीं मिला जबकि वह सोनिया गांधी की पहली पसंद माने जा रहे थे। उन्हें राजस्थान के घटनाक्रम पर उस समय माफी भी मांगनी पडी लेकिन उनके तेवरों में कोई कमी नहीं आई।
खड़गे की अध्यक्षता में आयोजित स्टीयरिंग कमेटी की बैठक का एजेंडा कुछ भी हो लेकिन मुख्य मुद्दा अशोक गहलोत और उनके विरोधी सचिन पायलट के बीच राजस्थान की सत्ता को लेकर रस्साकशी ही रहने की संभावना है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि राजस्थान में सरकार बनने के समय से ही गहलोत और पायलट के बीच तनाव जगजाहिर है और इससे कई बार सरकार पर संकट पर आ चुका है लेकिन अध्यक्ष बनने के बावजूद खड़गे ने समय रहते कार्रवाई नहीं की जिससे स्थिति हाथ से निकलती गई। गहलोत के गत दिनों पायलट को गद्दार तक कहने से राहुल गांधी की राजस्थान में भारत जोडो यात्रा विवादों में आ गई। गुर्जर नेता बैंसला इस यात्रा के विरोध में खुलकर सामने आ गए। क्योंकि यह यात्रा मध्य प्रदेश से झालावाड जिले में होकर राजस्थान में प्रवेश करेगी इसलिए एक दिन पहले ही कोटा में इसकी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर गहन चिंतन मनन हो चुका है। क्योंकि झालावाड कोटा संभाग का हिस्सा है इसलिए प्रशासन ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं तथा उपद्रवियों को नहीं बख्शने तथा सुरक्षा के लिए तीन हजार पुलिसकर्मी तैनात किए जाने की बात कही जा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि खड़गे के पार्टी अध्यक्ष का पद संभालने के बाद सचिन पायलट ने राजस्थान में अनिर्णय के माहौल को खत्म करने की मांग की थी। इसके बाद, सितंबर में समानांतर कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक आयोजित करने वाले गहलोत के वफादारों के खिलाफ निष्क्रियता के विरोध में वरिष्ठ नेता अजय माकन ने राजस्थान के एआईसीसी प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया। उक्त बैठक को लेकर महेश जोशी और शांति धारीवाल समेत तीन नेताओं को कारण बताओ नोटिस भी जारी हुए थे लेकिन सारी कार्रवाई ठण्डे बस्ते में चली गई। यही कारण रहा कि व्यथित अजय माकने ने माकन के राज्य प्रभारी के रूप में इस्तीफा देने की इच्छा व्यक्त की। उनके पत्र के बाद भी पार्टी अध्यक्ष खडगे ने हस्तक्षेप नहीं किया। ऐसा लगता है जैसे खड़गे के हाथ बंधे हुए हैं। जबकि अब कार्रवाई करने की जरूरत है।
पार्टी अध्यक्ष के चुनाव से पूर्व यह माना जा रहा था कि अनुभवी खड़गे संगठन में सुधार लाएंगे और आंतरिक विवादों को जल्द दूर करेंगे लेकिन फिलहाल तो ऐसी कोई संभावना नहीं है। अब निगाहें स्टीयरिंग कमेटी की मीटिंग पर हैं।