-विष्णुदेव मंडल-

कहते हैं दुविधा में दोनों गए ‘माया मिली ना राम’ बिहार के महागठबंधन सरकार बनते ही नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता और केंद्र से मोदी सरकार को उखाड़ने का दम भरा था। बिहार की फिंजा में एक ही नारा गुंज रहा था केंद्र सरकार विपक्षी पार्टियों और छोटे दल के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी अर्थात सीबीआई ईडी और एनआईए का गलत उपयोग कर रही हैं। विरोधी पार्टियों के नेताओं को केन्द्रीय एजेंसी के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, फंसाया जाता है इसलिए सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर आगामी 2024 में नरेंद्र मोदी को उखाड़ फेंकेगे।
नीतीश कुमार का आरोप था कि मौजूदा केंद्र सरकार जहां केन्द्रीय एजेंसियों का गलत उपयोग कर रही है वही अपने सहयोगी दलों को खत्म करने को प्रयास कर रही है, इसलिए हम भाजपा के साथ गठबंधन से बाहर आए हैं। वह विपक्षी एकजुटता मिशन पर दिल्ली भी निकले लेकिन हुआ ढाक के तीन पात।
पिछले दिनों सीपीआईएमएल के महा अधिवेशन में भी उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कांग्रेस समेत विपक्ष एकजुट हो जाएं तो हम भाजपा को सौ सीटों पर समेट देंगे। महाधिवेशन के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा की तेजस्वी यादव जी 2025 मैं मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। जबकि इनके ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह का बयान नीतीश कुमार के बयान से बिल्कुल उलट था। बाद में ललन सिंह भी अपने बयान से पलट गये।
दुसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के विधायकों, सांसदों और मंत्रियों का बयान पर गौर करें तो यह प्रतीत होता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं तेजस्वी यादव हैं। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती है। बीते दिनों पटना में किसानों से संबंधित मीटिंग में जहां मुख्यमंत्री पहुंचे थे वही तेजस्वी यादव ढाई घंटे लेट पहुंचे। अब आप समझ सकते हैं कि राज्य में किसानों की समस्या को दूर करने के लिए मीटिंग बुलाई गई जिनमें मुख्यमंत्री पहले आ गए और उपमुख्यमंत्री ढाई घंटे देर से पहुंचे।
अब सवाल उठता है की नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव महागठबंधन बनाने के बाद केंद्र सरकार को कोस रहे हैं, लेकिन आपस में ही इन दोनों दलों में ठनी हुई है। राजद के विधायक और मंत्री नीतीश कुमार पर दबाव बना रहे हैं कि वह बिहार की गद्दी छोड़े और दिल्ली जाएं। अब सवाल उठता है कि बिहार के साथ दलों ने मिलकर जिन्होंने दिल्ली के केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने के एक साथ प्रतिज्ञा ली थी वह किस लिए और क्यों? क्या नितीश कुमार तेजस्वी यादव सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए गठबंधन किए हैं?
एक तरफ भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश में 32 लाख करोड़ का इन्वेस्टमेंट लाने का प्रयास कर रही हैं ताकि उत्तर प्रदेश सरीखे अन्य राज्यों के बेरोजगारों को भी रोजगार मिल सके वही बिहार सरकार जातीय जनगणना कर रही है। महागठबंधन के नेताओं में ही आपस में नहीं पट रही है। जहां राष्ट्रीय जनता दल के कार्यकर्ता नेताओं और मंत्रियों तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नीतीश पर दबाव डाल रहे हैं वही जनता दल यूनाइटेड के नेताओं और कार्यकर्ताओं में गजब की मायूसी है। जदयू के संसदीय समिति के पूर्व अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पार्टी छोड़ कर चले गए हैं वह नीतीश के खिलाफ जमकर प्रहार कर रहे हैं। जदयू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह, बिहार की बदहाली का जिम्मेदार नीतीश कुमार को ठहरा रहे हैं। ,वह पिछले 18 सालों से बिहार के सत्ता पर काबिज हैं, लोजपा नेता चिराग पासवान भी नीतीश कुमार पर पिछले कुछ वर्षों से हमलावर रहे हैं, जीतन राम मांझी भी तेजस्वी यादव को बिहार की कमान संभालने के खिलाफ महागठबंधन से बाहर आने को आतुर हैं। केंद्र सरकार ने मुकेश साहनी को विशेष सुरक्षा प्रदान की है,
बिहार में हो रहे राजनीतिक चहल कदमी से यह प्रतीत हो रहा है कि आने वाला समय नीतीश कुमार के लिए ठीक नहीं रहने वाला है। केंद्र की सत्ता से भाजपा को उखाड़ फेंकने के सपना देखने वाले नीतीश कुमार को जब बिहार के लोग ही स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है ऐसे में वह केंद्र सरकार को उखाड़ देंगे इसकी संभावना बिल्कुल नहीं दिख रही है।
(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)
नीतीश कुमार मुख्य मंत्री की कुर्सी बचाए रखने में लगे हैं इनका ध्यान बिहार के शासन प्रशासन पर नहीं है.यह बे पैंदा के लोटा हैं,कब किधर खिसक जाएं,इनको ही पता नहीं है