
कहो तो कह दूं: …और बढ़ने दो तापमान !
-बृजेश विजयवर्गीय-

(स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणणविद्)
पर्यावरण की हानि की चेतावनियों को नजरअंदाज करने का दुष्परिणाम सामने है कि इस बार अनाज उत्पादन विशेषकर गेहूं की फसल संकटग्रस्त हो गई है। अब वैज्ञानिक सलाह दे रहे हैं कि फसल पर फव्वारे से छिडकाव करें। जो कि काफी दुष्कर कार्य है। हर किसान और हर जगह असंभव है। हमारे देश में सरकारें और आम नागरिक चेतावनियों को नजरअंदाज करने में माहिर है और तत्कालिक उपायों पर मशक्कत करने में ऊर्जा खर्च करने में शूरमा बनने के प्रयास करते है।
अचानक तापमान बढ़ने को इस ताजा समस्या का कारण माना जा रहा है। कोरोना काल में लोग प्रकृति के प्रति संवेदनशील होने की बात करते थे। कारोना का प्रकोप कम होते ही वापस उसी ढर्रे पर आ गए। इस तापमान और जलवायु परिवर्तन को कौन नियंत्रित कर सकता है। क्या यह सामान्य समझ भी हमारे शासक वर्ग और अपने अधिकारों के लिए मर मिटने वाले किसान वर्ग में नहीं है कि खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाए जाऐं जिससे कि वातावरण में नमी बरकरार रहे और तापमान को बढ़ने से रोका जा सके। इसी प्रकार जब शहरीकरण के अनियंत्रित विस्तार को विकास बता कर कृषि भूमि को कौड़ियों के भाव खरीदा बेचा जाता है तो कोई किसान व किसान संगठन नहीं बोलता। शहरीकरण से सीमेंटेशन, कंकरीट अनावश्यक निर्माण कार्यों से जंगल ही तो खड़े होते है। जो प्रत्यक्ष रूप से तापमान बढ़ाने का कार्य करते है। शहरीकरण की चकाचौंध में पेड़ों का संरक्षण और संवर्द्धन गुम हो गया है एवं जल स्त्रोत तालाब और नदियां भी विकास के नाम पर बलि चढ़ गए। इसे जांचने परखने की फुरसत किसे है। न तो हमारे शिक्षण संस्थान और न ही तकनीकी विशेषज्ञ इस बारे में गंभीर दिखाई दे रहे है। सब के सब अंधाधुंध विकास के बुल्डोजरों के आगे समर्पित नजर आते है। कहां है समावेशी विकास ? सब गोलमाल है कि नहीं?
क्या यह माना जाए कि हमारे नीति निर्माताओं के घ्यान में यह तथ्य नहीं होगा? जरूर होगा लेकिन स्वार्थ और दब्बूपन का चश्मा चढ़ा हो तो फिर विनाश बने विकास की चमक ही दिखती है। एक दो डिग्री तापमान बढ़ने से जहां फसलों के चौपट होने का खतरा हो गया है तो पर्यावरण की तो जाने अनजाने में बड़ी हानि हो रही है। खनन, पहाड़ों और नदियों की लूट को तो हम देख ही रहे है। अब तापमान न बढ़े तो क्या करे। इसे ही कहते है धरती का बुखार जो अब खद्यान्न संकट के रूप में सामने है।