-बृजेश विजयवर्गीय-

कोटा। कुछ दिनों पूर्व स्मार्ट शहर कोटा के सीएडी चौराहे पर पीपल का वृक्ष (आक्सीजन फैक्ट्री) होता था। अब चौराहे को लोहे के चद्दर से ढांक कर कुछ विकास कार्य किया जा रहा है। विकास तो ठीक है लेकिन यह पर्यावरण की कीमत पर हो तो चिंतनीय है। विकास कार्य के नाम पर चौराहे के बीच लगे शानदार पीपल के पेड़ को काटने का क्या औचित्य है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रदूषण का दंश झेल रहे शहर के वाशिंदों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड रहा। जब विकास के नाम पर पेड उजाडा जा रहा था तब कोई विरोध करने वाला सामने नहीं आया। यहां तक कि इसके आसपास दुकान और अन्य काम धाम करने और रहने वालों ने भी आपत्ति तक नहीं जताई। इससे तो यही लगता है कि शहर में पर्यावरण के प्रति जागृति नहीं है। जबकि पिछले सर्दियों के सीजन में कोटा का एक्यूआई का स्तर देश के सबसे प्रदूषित शहरों तक में आ चुका है। श्वास रोग और चर्म रोग विशेषज्ञ प्रदूषण के बारे में नियमित चेता चुके हैं लेकिन प्रशासन और जिम्मेदार तो दूर आम जन तक बेपरवाह हैं। जबकि इस चौराहे से प्रति दिन हजारों लोग निकलते हैं। इसके आसपास सीएडी और यूआईटी, नगर निगम समेत कई सरकारी कार्यालय और निजी प्रतिष्ठान हैं। इनमें सैंकडो लोग काम करते हैं।
पीपल का पेड़ करना दुर्भाग्य को न्योता देना है। ईश्वर उन लोगों को क्षमा करे जो इस पाप के दोषी हैं। पर्यावरण के लिए किसी को चिंता इस लिए नहीं है क्योंकि उनमें सोचने समझने की क्षमता ही नहीं है। कोटा में विकास पागल हो गया है।
विकास की होड़ ने कोटा नगर के पर्यावरण को दरकिनार करते हुए सड़क के दोनों छोर के फुटपाथ को सीमेंट कांक्रीट से ढक दिया गया है फलस्वरूप वर्षा का पानी रिचार्ज नहीं हो रहा है और शहर का जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है, इसी तरह सड़कों के चौड़ीकरण के नाम पर हजारों पेड़ों की बलि चढ़ चुकी है, आश्वासन यह कि काटे गए पेड़ों की तुलना में दो गुना पेड़ लगाए जायेंगे, लेकिन कनेर के पौधे लगाकर खानी पूर्ति कर ली गई है .कोटा का पर्यावरण प्रदूषण का एक्यूआई खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है लेकिन जन मानस सेहत के बजाय रोजी रोटी कमाने में लगा है.आने वाले पीढ़ी को हम प्रदूषित शहर छोडकर जाने वाले हैं ताकि वह अस्पतालों में शरण लेने के लिए विवश रहे