-बृजेश विजयवर्गीय-

कोटा. स्मार्ट सिटी कोटा को स्मार्ट बनाने के लिए इन दिनों कोचिंग सिटी की सड़कों पर सजावटी व दिखावटी पाम आदि के पौधे लगाने का काम चल रहा है। इनकी न तो छाया होती है और न ही कोई फल, जिनसे पक्षी पेट भर सकें। प्रशासन को चाहिए कि सड़कों के किनारे नीम, पीपल, बड, शीशम, कचनार, करंज, जामुन आदि स्थानीय प्रजाति के जैव विविधता के महत्व के पौधे लगाए ताकि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण के दुष्प्रभाव पर नियंत्रण हो सके और जनता के धन का सदुपयोग हो। पूर्व में भी राजधानी जयपुर समेत कई जगह पॉम वृक्ष लगाए गए लेकिन इनका हश्र क्या हुआ किसी से छिपा नहीं है। यह समझ नहीं आता कि कोटा की जलवायु में जो पेड पौधे पनप सकते हैं उनको लगाने में क्या समस्या है।
सरकारी महकमों नगर सुधार न्यास, नगरीय निकायों के पास उद्यान विशेषज्ञों के पद हैं जो वर्षों से खाली पड़े हैं। लेकिन विश्व विद्यालयों के प्राध्यापकों, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की सलाह लें कर शहर का पर्यावरण सुधार सकते हैं। प्रशासन को इसमें क्या परेशानी हो सकती है। धन तो जनता का ही लगना है। यदि किसी विशेष अतिथि को दिखाना ही है तो सार्थक पौधे दिखाएं। आनन फानन में बेमतलब के खर्चीले पौधे लगाने के पीछे जो भी गणित हो लेकिन गुणकारी पौधे लगाने और बचाने से पशु पक्षी एवं मनुष्य सभी फलित होंगे। पेड़ों को लगाने व काटने का निर्णय सक्षम विशेषज्ञ अधिकारी करता है। जबकि इन दिनों कोटा में पेड पौधे लगाने का काम ऐसे लोगों को सौंप रखा है जैसे इतिहास का शिक्षक विज्ञान और वाणिज्य का अध्यापक संस्कृत पढाने लगे।
(जल बिरादरी व बाघ चीता मित्र, चम्बल संसद के संयोजक,यह लेखक के निजी विचार हैं)
बृजेशजी की सलाह अनुकरणीय है, देश के महा नगरों समेत कोटा भी प्रदूषण की गिरफ्त में हैं.बाल बुजुर्गों तथा स्थमा रोगियों को सांस लेने में कठिनाई होती है ऐसे हालात में कोटा शहर को हरा भरा बनाने की जरूरत है अन्यथा आने वाले समय में आम नागरिकों को मिनी आक्सीजन सिलेंडर लेकर चलना होगा
किसी को नहीं पड़ी है पर्यावरण और पक्षियों की। सरकारी कर्मचारी और जनप्रतिनिधि अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं।
स्मार्ट सिटी के नाम पर सजावट और दिखावा ही रह गया है। अंडरग्राउंड सीवर पाइप लाइन डालने का काम पिछले दस साल में चल रहा है लेकिन एक घर का भी कनेक्शन इस से अभी तक नही हुआ है। मजे की बात ये है कि जहां पांच साल पहले पाइप लाइन डाली गई थीं उन्ही गलियों में फिर से एक नई पाइप लाइन डाल दी गई है। क्या इस तरह से कभी कोटा स्मार्ट सिटी बन पाएगा।
समझ नहीं आता कि क्या अच्छा है क्या बुरा है।क्या लाभदायक रहेगा क्या अनुपयोगी है ये आमजन भी जानता है तो यही बात जिम्मेदार लोगों के समझ में क्यों नहीं आती।