फिर भी नहीं मिल पाता इन्हें कोई ऐसा टोटका…

-सुनीता करोथवाल-

sunita karothwal
सुनीता करोथवाल लेखिका एवं कवयित्री

कितनी भोली होती हैं ये अला बला टालती औरतें
बहू के लिए जचगी पर घी में तैरता हलवा बनाती
फिर पल्लू से ढांपकर रसोई से कमरे तक जाती
सरसों के तेल की बाती जला
जूती से मार कर नजर झाड़ती

नूण राई कर अबोली चलती हैं घर के बाहर
आँचल से ढक कर पिलाती हैं दूध
बार-बार अपनी ही नजर से डरती
डालती हैं थुथकारा
दूध भी ना जमे तो काट लगाती हैं चाकू की
बचाए रखती हैं नींबू, मिर्च, राई, खोटा सिक्का, घोड़े की नाल बांधकर घर में दूध पूत
रोटी पर रोटी भी आ जाए तो रखती हैं साल भर बुखारी में
अनाज में बरकत मान कर।

काले डोरे पर रुका रहता है इनका विश्वास
कि नजर बुरी लगेगी ही नहीं
लाख टोटके करती हैं
फिर भी नहीं मिल पाता इन्हें कोई ऐसा टोटका
जो बता सके कि क्यूं उठ जाते हैं घर के मर्द
एक रोटी की देरी पर थाली छोड़ कर।
सुनीता करोथवाल

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Shree Ram Pandey
Shree Ram Pandey
2 years ago

गांव मोहल्ले में ऐसे टोटके सुनने, देखने को अब नहीं मिलते हैं यह बीते जमाने की बात हो गई है