-सुनीता करोथवाल-

कितनी भोली होती हैं ये अला बला टालती औरतें
बहू के लिए जचगी पर घी में तैरता हलवा बनाती
फिर पल्लू से ढांपकर रसोई से कमरे तक जाती
सरसों के तेल की बाती जला
जूती से मार कर नजर झाड़ती
नूण राई कर अबोली चलती हैं घर के बाहर
आँचल से ढक कर पिलाती हैं दूध
बार-बार अपनी ही नजर से डरती
डालती हैं थुथकारा
दूध भी ना जमे तो काट लगाती हैं चाकू की
बचाए रखती हैं नींबू, मिर्च, राई, खोटा सिक्का, घोड़े की नाल बांधकर घर में दूध पूत
रोटी पर रोटी भी आ जाए तो रखती हैं साल भर बुखारी में
अनाज में बरकत मान कर।
काले डोरे पर रुका रहता है इनका विश्वास
कि नजर बुरी लगेगी ही नहीं
लाख टोटके करती हैं
फिर भी नहीं मिल पाता इन्हें कोई ऐसा टोटका
जो बता सके कि क्यूं उठ जाते हैं घर के मर्द
एक रोटी की देरी पर थाली छोड़ कर।
सुनीता करोथवाल
गांव मोहल्ले में ऐसे टोटके सुनने, देखने को अब नहीं मिलते हैं यह बीते जमाने की बात हो गई है