हर अवसर पर चार चांद लगा देती है साड़ी

वर्ष 1985 में पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक़ की तानाशाही जब चरम पर थी, एक फ़रमान के तहत उन्होंने औरतों के साड़ी पहनने पर पाबंदी लगा दी थी। मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब से जनरल ज़िया उल हक की नाराज़गी जगजाहिर थी। उनकी नज़्में- ग़ज़लें पाकिस्तान के रेडियो, टीवी पर प्रतिबंधित कर दी गईं । ऐसे में पाकिस्तान की मशहूर गायिका इक़बाल बानो ने विरोध दर्ज कराते हुए लगभग पचास हजार लोगों के सामने लाहौर के एक ऑडिटोरियम में काले रंग की साड़ी पहन कर फ़ैज़ साहब की ये नज़्म गाई

-प्रतिभा नैथानी-

प्रतिभा नैथानी

मशहूर अभिनेता सुनील दत्त ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कैंसर के लंबे इलाज़ के बाद जब नरगिस दत्त विदेश से भारत वापस आ रही थीं तो एयरपोर्ट पर उन्होंने साड़ी पहनने की ज़िद की । दत्त साहब ने उन्हें समझाया कि अभी आप इस हाल में नहीं है कि साड़ी को ठीक से संभाल पाएं, इसलिए जो कपड़े पहने हैं, उन्हीं में घर चलिए। लेकिन वह नहीं मानीं। पूरे दो घंटे लगे उन्हें साड़ी पहनने में। चुन्नटें बनाती हुई,साड़ी का पल्ला सेट करती नरगिस जी बीच-बीच में पति से पूछती भी जातीं …अब सही है?? ….अब ठीक है ??? …अब ठीक है???
बेनूर हो चुके चेहरे और अशक्त काया से दुःखी नरगिस जी को अपने आख़िरी समय में भी साड़ी पर ही यकीन था कि यही वह पुख़्ता लिबास है जो प्रशंसकों के बीच उनके व्यक्तित्व को चिर-परिचित दिखाता है।

आरके बैनर की फिल्मों का एक अनिवार्य हिस्सा होने के साथ-साथ नरगिस जी को “मदर इंडिया” जैसी महान फिल्म की नायिका होने का भी गौरव हासिल था। इसके साथ ही सिनेमा जगत से पहली महिला राज्यसभा सांसद भी नरगिस दत्त ही थीं। नरगिस जी के अलावा श्रीमती इंदिरा गांधी, सुषमा स्वराज, इंदिरा नूई वो हस्तियां हैं जिनके पहनावे से साड़ी को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी अच्छी पहचान मिली है। मशहूर फिल्म अभिनेत्री रेखा तो कांजीवरम साड़ियों का मुख्य चेहरा हैं।
साड़ी हमारा पारंपरिक पहनावा है। शादी- ब्याह तीज-त्यौहार,उत्सव के खास मौके हों या यूं ही रोजमर्रा में पहनने की आवश्यकता , साड़ी हर अवसर पर चार चांद लगा देती है। देश के सभी भागों में अलग-अलग डिजाइन और फैब्रिक की साड़ियां बनाई जाती हैं। पहनने का तरीका भी कुछ-कुछ भिन्न है लेकिन लोकप्रियता में कहीं कोई अंतर नहीं।
यूं प्रत्येक वर्ष 21दिसंबर को हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय साड़ी दिवस मनाया जाता है , लेकिन वर्ष 1985 में पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक़ की तानाशाही जब चरम पर थी, एक फ़रमान के तहत उन्होंने औरतों के साड़ी पहनने पर पाबंदी लगा दी थी। मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब से जनरल ज़िया उल हक की नाराज़गी जगजाहिर थी। उनकी नज़्में- ग़ज़लें पाकिस्तान के रेडियो, टीवी पर प्रतिबंधित कर दी गईं । ऐसे में पाकिस्तान की मशहूर गायिका इक़बाल बानो ने विरोध दर्ज कराते हुए लगभग पचास हजार लोगों के सामने लाहौर के एक ऑडिटोरियम में काले रंग की साड़ी पहन कर फ़ैज़ साहब की ये नज़्म गाई।

हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे।

साड़ी के कद्रदान और इकबाल बानो की हिम्मत को सराहने वाले लोग 13 फरवरी के इस दिन को असली साड़ी दिवस मानते हैं । बहरहाल भारत और पाकिस्तान के अलावा भी तमाम देश-दुनिया में साड़ी की दीवानी बेशुमार महिलाएं हैं। हम सभी का प्रिय परिधान, साड़ी तैयार वाले बुनकरों की मेहनत को सलाम और इस दिवस की बहुत-बहुत बधाई।

 

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Neelam
Neelam
2 years ago

????????