
– विवेक कुमार मिश्र-

हम क्यों ऐसा सोचते हैं कि
जो हम सोच रहे हैं
वह ठीक ही हो
ठीक का ठीक होना जरूरी नहीं
हो सकता है कि
जो हमें ठीक दिखता है
या जिसे हम ठीक मानते हों
वह बस हमारी सुविधा का विस्तार ही हो
और अपनी सुविधाओं की दुनिया में होना
ज्यादातर को ठीक लगता है
पर यह ठीक लगना ठीक नहीं है ।
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बहुत सुन्दर