#सर्वमित्रा_सुरजन
तमिलनाडु में सत्तारुढ़ डीएमके ने भाजपा की नेता खुशबू सुंदर और राज्यपाल आर एन रवि पर दिए गए विवादित बयानों के बाद अपने नेता शिवाजी कृष्णमूर्ति को न केवल पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त किया, बल्कि अब उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया है। दरअसल इस साल जनवरी में शिवाजी कृष्णमूर्ति ने राज्यपाल आर एन रवि के खिलाफ अपने अपमानजनक बयान देते हुए था कि ‘अगर राज्यपाल अपने विधानसभा भाषण में आंबेडकर का नाम लेने से इनकार करते हैं, तो क्या मुझे उन पर हमला करने का अधिकार नहीं है? इस बयान में कृष्णमूर्ति ने उन्हें कश्मीर चले जाने की नसीहत भी दी थी। उन्हें तभी पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। अब कृष्णमूर्ति ने अपने एक भाषण में भाजपा की नेता और राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य खुशबू सुंदर को पुराना ढोल बताया। इस पर डीएमके ने उन्हें पार्टी से निष्कासित ही कर दिया। इस बारे में डीएमके महासचिव दुरईमुरुगन ने घोषणा की कि शिवाजी कृष्णमूर्ति को पार्टी अनुशासन का उल्लंघन करने और इसे बदनाम करने के लिए प्राथमिक सदस्यता सहित पार्टी के सभी पदों से बर्खास्त किया जा रहा है।
इससे पहले खुद पर की गई अपमानजनक टिप्पणी के लिए खुशबू सुंदर ने डीएमके नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिए थे। उन्होंने अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री स्टालिन से सवाल किया है कि क्या आप अपने परिवार की महिलाओं के बारे में ऐसे बयानों को स्वीकार करेंगे। खुशबू ने स्टालिन को यह भी लिखा कि आपकी पार्टी असभ्य गुंडों के लिए एक सुरक्षित आश्रय बन रही है। यह बहुत शर्म की बात है। बहरहाल भाजपा ने इस मामले की पुलिस में शिकायत की तो अब कृष्णमूर्ति को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। खुशबू सुंदर ने ऐलान किया है कि मेरी लड़ाई रुकने वाली नहीं है और इस तरह के पुरुषों को सबक सिखाने की जरूरत है। उन्होंने ये भी बताया कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है और भाजपा अपनी नेता के साथ खड़ी है।
किसी भी महिला के लिए अपमानजनक टिप्पणी एक सभ्य, सुसंस्कृत समाज में हर हाल में अस्वीकार्य है। वह महिला चाहे गृहिणी हो, दफ्तर जाती हो, राजनीति से या किसी भी अन्य क्षेत्र से जुड़ी हो, किसी भी वजह से अगर वैचारिक या किसी अन्य किस्म के मतभेद हों, तब भी उसका अपमान करना गलत है। महिला का सम्मान हर स्थिति में बना रहे, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस लिहाज से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने सराहनीय काम किया है कि अपनी पार्टी के नेता को निष्कासित किया और उस पर कानूनी कार्रवाई में कोई अड़चन नहीं डाली। अन्यथा हाल-फिलहाल में ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जब महिला उत्पीड़न का आरोपी रसूखदार और सत्तारुढ़ दल से संबद्ध हो, तो किस तरह उसे बचाने के सारे हथकंडे अपनाए जाते हैं।
खुशबू सुंदर ने स्टालिन से जो सवाल किया था कि क्या वे अपने परिवार की महिलाओं के लिए ऐसे बयान को स्वीकार करेंगे, तो इसका जवाब उन्होंने बखूबी दे दिया कि परिवार ही नहीं, वे विरोधी दल की नेता के अपमान को भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। आज की राजनीति में ऐसी मिसाल कहां देखने मिलती है। खुशबू को ऐसे ही सवाल महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न की शिकायत और भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग पर राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य होने और एक महिला होने के नाते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी कर ही लेना चाहिए। अगर वे वाकई महिलाओं का अपमान करने वाले पुरुषों को सबक सिखाने का इरादा रखती हैं, तो फिर ऐसा सवाल उन्हें भाजपा नेताओं से करने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। क्योंकि ऐसा तो नहीं है कि पार्टी के साथ-साथ महिलाओं की इज्जत का पैमाना भी बदल जाता है।
कांग्रेस की विधवा, जर्सी गाय, शूर्पणखा जैसी हंसी, दीदी ओ दीदी, 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड जैसे तमाम बयान भी महिलाओं के अपमान की नीयत से ही दिए गए हैं। इनमें से एक भी कटाक्ष हास्य बोध को नहीं दिखा रहा, विशुद्ध तौर पर इसमें उन महिलाओं के अपमान किया जा रहा है, जिनसे राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता है। उम्मीद है जब खुशबू सुंदर नारी अस्मिता की अपनी लड़ाई जारी रखेंगी, तो अतीत में दिए गए इन बयानों का संज्ञान भी वे अवश्य लेंगी।
एम.के.स्टालिन के शासनकाल में पहली बार किसी नेता की गिरफ्तारी नहीं हुई है। पिछले सप्ताह ही भाजपा के प्रदेश सचिव एस. जी. सूर्या को एक पोस्ट के कारण गिरफ्तार किया गया था। सूर्या ने यह पोस्ट एक सफाई कर्मचारी की मौत पर की थी, जिसके बाद माकपा की ओर से की गई शिकायत के आधार पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी पर भाजपा नेता राजीव चंद्रशेखर ने टिप्पणी की थी कि, ”मुख्यमंत्री स्टालिन यह साबित करने के लिए बेताब हैं कि उनका नाम पूर्व सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन से बहुत मिलता-जुलता है, जिनके लिए लोगों की स्वतंत्रता और उनके अधिकार मायने नहीं रखते थे और वह उन्हें जेल में डालते थे।”
सोवियत रूस के तानाशाह और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री में नाम के अलावा कोई समानता नहीं है, क्योंकि डीएमके निरंकुशता के दम पर तमिलनाडु में शासन नहीं कर रही है, वहां की जनता ने उसे सत्ता सौंपी है। और जहां तक सवाल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी का है, तो इस बारे में भाजपा सरकार खुद कई बार सवालों के कटघरे में आ चुकी है कि यहां सरकार की आलोचना करने वालों को देशविरोधी मानकर प्रताड़ित किया जाता है। कितने पत्रकार, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता सरकार के विरोध का भुगतान अपनी आजादी खोकर कर रहे हैं। अच्छी बात है कि भाजपा नेताओं को महिला सम्मान, अभिव्यक्ति की आजादी, स्वतंत्रता आदि की परवाह है। लेकिन इसके लिए पैमाने समान होने चाहिए। ये मूल्य राजनैतिक सुविधा के हिसाब से घटाए या बढ़ाए नहीं जा सकते।
(देवेन्द्र सुरजन की फेसबुक वाल से साभार)
राजनीति में अमर्यादित भाषा का कोई स्थान नहीं है,डीएमके नेता स्टालिन की त्वरित कार्रवाई से आशा की जा सकती है कि देश की अन्य राजनीतिक पार्टियों इसका अनुसरण करेंगी