
-विष्णु देव मंडल-

(तमिलनाडु निवासी स्वतंत्र पत्रकार एवं व्यवसायी)
चेन्नई। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई महानगर में दिवाली की धूम है। टी नगर ,पुरुषवाकम सरीखे बाजारों में खरीदारी चरम पर है। पटाखे, कपड़े, और गहने के शोरूम में भारी भीड़ उमड़ रही है, वही शहर में हजारों परिवार ऐसे भी हैं जिनके लिए यह दिवाली कोई खास दिन नहीं बस आम बनकर रह गई है। मुख्य रूप से नौकरी पेशा अधिकांश लोगों अपने काम को लेकर निराशा है। किसी को समय पर वेतन नहीं मिलने की चिंता है तो कई लोग ऐसे भी हैं जिनकी कंपनियांें ने बोनस नहीं दिया है। वे इस बात को लेकर चिंतित हैं की इस बार वह दिवाली में अपने परिवार और बच्चों के लिए नए वस्त्र खरीदने के स्थित में नहीं है। उनके लिए यह दिवाली फीकी रहने वाली है।
एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम कर रहे हैं प्रबंधक संतोष कुमार बताते हैं की उसकी कंपनी हर साल दिवाली में बोनस दिया करती थी, लेकिन इस बार अब तक बोनस नहीं मिला है। कंपनी के मालिक का कहना है कि कोरोना में बिजनेस घाटे में चले गए इसलिए कंपनी इस स्थिति में नहीं है कि अपने कर्मचारियों को बोनस दे सके। वही शिपिंग कंपनी में कार्यरत एक कर्मचारी जगदीषण बताते हैं की उनकी कंपनी हर दीपावली को उनके परिवार के लिए कुछ ना कुछ गिफ्ट दिया करती थी। लेकिन इस बार स्थित बिल्कुल अलग है। कंपनी इस बार दिवाली में किसी तरह का गिफ्ट या फिर बोनस देने से मना कर दी है इसलिए इस बार दिवाली कुछ खास नहीं रहेगी। वही बीकॉम की छात्रा सुषमा बताती हैं की कोरोना काल में उनके पिताजी का नौकरी चली गई। इसलिए उनके घर का रहन सहन बिलकुल बदल गया। इस बार कालेज की फीस भी बढ़ा दी गयी है। अब तक अपने कॉलेज का फीस तक नहीं भर पाई है। ऐसे में दिवाली में नए कपड़े की कोई उम्मीद नहीं है। वह बताती है कि जबसे कोरोना आया है त्योहार मनाना कठिन हो गया है। इस बार का दिवाली उनके लिए बढ़िया नहीं है। घरों में कामकाज कर भरण पोषण करने वाली सुलोचना बताती है कि पहले जिन जिन घरों में वह काम करती थी उनके मालिक उन्हें गिफ्ट और बोनस दिया करते थे। नए कपड़े देते थे लेकिन इस साल कोई कुछ नहीं दे रहा हैं। जो वेतन मिलता है उससे घर चलाना भी कठिन होता है। पति महीनों से बेरोजगार है ऐसे में यह दिवाली उनके लिए कंगाली के सिवाय कुछ और नहीं है। बच्चे कपड़े के लिए रोते हैं लेकिन घर की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण वह इस दिवाली में कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं।
पलंबर आरके सुमन का कहना है की पिछले कई महीनों से उन्हें प्लंबिंग का काम नहीं मिल रहा है। छोटे-छोटे बच्चे पटाखे और पोशाक मांग रहे हैं लेकिन उनके जेब में उतने पैसे नहीं जो अपने बच्चों को कपड़े खरीद कर दे सकें। पत्नी जो काम से इनकम होती है उससे घर का खर्चा मुश्किल से चल पाता है। ऐसे में दिवाली हमारे लिए कोई खास नहीं है।
जहां दिवाली बहुतेरे लोगों के लिए हर्षाेल्लास का त्यौहार बना हुआ है वहीं हजारों परिवार ऐसे हैं जिन्हें अर्था भाव में समस्या है। निजी कंपनियों में नौकरी पेशा लोगो में यह दिवाली कोई खास नही है। ट्रक ड्राइवर यू सर्वनन का कहना है कि चेन्नई मार्केट मंदी के दौर से गुजर रहा है। लोकल ट्रक चलाते हैं लेकिन पिछले कई दिनों से महानगर में लोकल काम कम मिल रहा है। हर रोज काम नहीं मिलता है। इस दिवाली मे अपने घर का खर्च चलाना मुश्किल हो पा रहा है इसलिए हमारे लिए यह दिवाली कोई खास नहीं है। काम नहीं है लेकिन खर्च जस के तस बना हुआ है।
उत्तर भारत में दीपावली का त्योहार उत्साह एवं उमंग से मनाया जा रहा है, बाजार सजे हुए हैं, खरीदारों की भीड़ लगी है,ऐसा कहीं भी नहीं लगता है कि देशमें मंहगाई है, हां कुछ ऐसे परिवार हैं जहां अभाव है लेकिन इनमें भी त्यौहार पर उत्साह है अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार बजार से खरीदारी कर रहे हैं।घर, बाजार बिजली की रोशनी से जगमगा रहे हैं,. भारतीय संस्कृति में दीपोत्सव सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.. दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं