
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

ये कमींगाहें* ये हथियार कहाॅं थे पहले।
ये ख़रीदार ये बाज़ार कहाॅं थे पहले।।
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दरमियाॅं अपने तरफ़दार कहाॅं थे पहले।
दोस्त ही दोस्त थे अग़यार*कहाॅं थे पहले।।
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ज़िंदगी खेलती फिरती थी गली कूचों में।
इतने मक़तल* सरे बाज़ार* कहाॅं थे पहले।।
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एक ही शख़्स जो रहबर है वही रहज़न* भी।
एक चेहरे में ये किरदार कहाॅं थे पहले।।
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वाक़िया*और ख़बर और असर और ही कुछ।
सुर्ख़ियाॅं* ऐसी ये अख़बार कहाॅं थे पहले।।
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इश्क़ में सर भी कटाने का हुनर रखते थे।
अपने होंटों पे ये इनकार कहाॅं थे पहले।।
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हमने समझी थी जमाअत* की फ़जीलत* “अनवर”।
ख़ुद से वाबस्ता सरोकार कहाॅं थे पहले।।
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कमींगाहें* छुप कर दुश्मन को मारने की जगह अग़यार*दुश्मन शत्रु
मक़तल*वध स्थल
सरे बाज़ार* आम रास्ते पर
रहज़न* लुटेरा डाकू
वाक़िया* घटना
सुर्ख़ियाॅं*अख़बार की हेड लाइन्स
जमाअत* सामूहिकता फ़ज़ीलत* अच्छाई महत्व
शकूर अनवर
9460851271
दौर_ए _हाल और माज़ी का बहतरीन मवाज़ना पेश किया है जनाब…????