-अखिलेश कुमार-

(फोटो जर्नलिस्ट)
कोटा। कोटा संभाग की जैव विविधता अतुलनीय है। यहां पहाड हैं तो पठार भी और नदी और ताल तलैया के साथ ही कई ऐसे इलाके हैं जो दलदली कहे जाते हैं। इनमें जैव विविधता देखने को मिलती है और इसी वजह से कई बहूमूल्य वनस्पति, जड़ी बूटियां उपलब्ध हैं। ऐसा ही दलदली भूमि में पाया जाने वाला पादप कोकिलाक्ष एक बहुमूल्य आयुर्वेदिक औषधि है। कोकिलाक्ष को तालमखाना कहते हैं। सामान्य तौर पर इसके बीज का प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता है। ये एक तरह का कंटीला पौधा होता है जो नदी, तालाब के किनारे गीली मिट्टी में उगता है। इसके बीजों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा यौन संबंधी समस्याओं के लिए किया जाता है।

प्राचीन काल से तालमखाना का प्रयोग कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। आयुर्वेदीय निघण्टु एवं संहिताओं में कोकिलाक्ष का वर्णन प्राप्त मिलता है। चरक-संहिता के शुक्रशोधन महाकषाय में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है।

तालमखाना मीठा, अम्लिय गुण वाला, कड़वा, ठंडे प्रकृति का, पित्त को कम करने वाला, बलकारक, खाने में रुचि बढ़ाने वाला, फिसलने वाला, वात और कफ करने में सहायक होता है। यह सूजन, पाइल्स, प्यास, पित्त संबंधी समस्या, शोफ विष, दर्द, पाण्डु या पीलिया, पेट संबंधी रोग, पेट का फूलना , मूत्र का रुकना , जलन, आमवात या गठिया, प्रमेह या मधुमेह, आँखों के बीमारियाँ तथा रक्तदोष को कम करने में मदद करता है। इसके बीज कड़वे, मधुर, ठंडे तासीर के, भारी, कमजोरी दूर करने वाले तथा गर्भ को पोषण देने वाले होते हैं। इसका प्रयोग योग्य चिकित्सक की सलाह और देख रेख में ही किया जाना चाहिए।