द ओपिनियन डेस्क

नीतीश कुमार ने 10अगस्त को 8 वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके तत्काल बाद उन्होंने परोक्ष रूप से पीएम नरेंद्र मोदी पर यह कहते हुए हमला बोला कि क्या 2014 में आने वाले 2024 में रह जाएंगे? सच है लोकतंत्र में कोई यह भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि वह आने वाले कितने दिनों तक सत्ता पर काबिज रहेगा। इसका फैसला अंतत: जनता ही करती है। लेकिन नीतीश ने जो कुछ भी कहा या फिर नीतीश के खिलाफ जो कुछ कहा जा रहा है उससे एक बात तो शीशे की तरह साफ है कि यह अलगाव किसी सैद्धांतिक लड़ाई का नतीजा नहीं है। भाजपा का बुनियादी एजेंडा उसके गठन के समय से ही स्पष्ट है, कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। उसको घोर साम्प्रदायिक करार देने वाले उसी भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए हैं और लालू यादव को भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा बताने वाले उनके साथ मिलकर पहले भी सत्ता का स्वाद चख चुके हैं और अब भी चख रहे हैं। इसलिए नीतीश का यह यूटर्न उनकी अपनी राजनीतिक गणित का हिस्सा है। इस राजनीतिक गणित में बिहार की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनना और उसके साथ आगे चलकर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करना शामिल हो सकता है। बिहार के राजनीतिक गणित में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होना आसान है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पीएम के लिए विपक्ष का साझा प्रत्याशी आसान नहीं है। अभी हमने राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव में इस बात को देखा है कि विपक्ष समग्र रूप से एक मंच पर नहीं आया। राजग के दोनों प्रत्याशियों को उम्मीद से ज्यादा मत मिले। इसलिए सारा विपक्ष नीतीश के पीछे खड़ा हो जाएगा इसका अभी से दावा करना अतिश्योक्ति ही होगी। यह महत्वाकांक्षा और भी नेता पाले हुए हैं। कांग्रेस अपना जनाधार सिकुडऩे के बावजूद आज भी यह मानती है कि देश में भाजपा के बाद सबसे बड़ी पार्टी है और पूरे देश में उसके कार्यकर्ता हैं। अधिकतर क्षेत्रीय दल अपने अपने राज्य में ही प्रभावी हैं अपने राज्य के बाहर उनका कोई मजबूत जनाधार नहीं है। राजद हो या जनता दल तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, तेलंगाना राष्ट्र समिति या अन्य कोई क्षेत्रीय दल अपने राज्य से बाहर अपने बूते पर कुछ नहीं है। वे एक-एक मिलकर ही ग्यारह बन सकते हैं। तो क्या विपक्षी दल एकजुट हो पाएंगे यह सबसे बड़ा सवाल है। नीतीश के सामने समग्र विपक्ष की स्वीकार्यता की चुनौती होगी वहीं मोदी के सामने ऐसी कोई चुनौती नहीं है। वह राजग का सबसे बड़ा व निर्विवाद चेहरा हैं। उनकी वोट अपील हर विपक्षी नेता से बहुत बड़ी है। ऐसे में राजग के सामने विपक्षी खेमे वाले राज्यों में अपना जनाधार मजबूत करने की चुनौती होगी। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में जो सामाजिक गणित तैयार किया उसने विधानसभा चुनाव में उसे सहजता से दूसरी बार सत्ता में वापसी कर दी थी। अब देखना यह है कि भाजपा बिहार में कौनसा सामाजिक गणित अपनाती है। बिहार में तेजस्वी प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे हैं। क्या वे नीतीश के साथ मिलकर यादव-कुर्मी का सामाजिक समीकरण बना पाएंगे। उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास कुर्मी नेता हैं। यदि दक्षिणी राज्यों की ओर देखें तो तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव के साथ पीएम मोदी के रिश्ते असहज कहे जा सकते हैं। राव हाल में हुई नीति आयोग की बैठक में नहीं आए। पीएम मोदी तेलंगाना के दौरे पर गए तब भी राव ने उनके साथ मंच साझा नहीं किया था। लेकिन पीएम तमिलनाडु के दौरे पर गए तो दोनों बार स्टालिन उनके साथ कार्यक्रम मेें मौजूद थे। उन्होंने अपनी बात कही और पीएम मोदी ने तमिल साहित्य, संस्कृति, भाषा के गौरव को रेखांकित किया। विकास की बात की। गृह मंत्री अमित शाह गत दिनों ओडिशा के दौरे पर गए तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी उनके कार्यक्रम में मौजूद थे। शाह ने कहा भी हम उड़ीसा सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। वहां रिश्तों में तल्खी नजर नहीं आई। इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता कि राजग के बाहर राजग के दृश्य-अदृश्य दोस्त हैं। इसलिए प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का संयुक्त प्रत्याशी बनने की नीतीश की राह आसान नहीं है। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव तो चुनौती के रूप में मौजूद हैं। आने वाले विधानसभा चुनावों में आप ने यदि कोई जलवा दिखाया तो कई सामाजिक समीकरण राजनीतिक समीकरण बनेंगे बिगडेंगे।

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Neelam
Neelam
2 years ago

सटीक आंकलन व विश्लेषण