
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
मुफ़लिसी* का सम* हमारे सामने है।
ज़िंदगी का ग़म हमारे सामने है।।
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अपनी ही ख़ुशियों के दुश्मन हम हुए हैं।
अपना ही मातम हमारे सामने है।।
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हर किसी की ऑंख में ऑंसू ही ऑंसू।
इतना सबका ग़म हमारे सामने है।।
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ज़ह्र आलूदा हवाऍं चल रही हैं।
सरफिरा मौसम हमारे सामने है।।
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ईर्ष्या की नद्दियाॅं बहने लगी हैं।
द्वेष का संगम हमारे सामने है।।
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थरथराते फूल उपवन में बचे हैं।
काॅंपती शबनम हमारे सामने है।।
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नृत्य जीवन का कहाॅं ठहरा है “अनवर”।
मौत की सरगम हमारे सामने है।।
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मुफ़लिसी*ग़रीबी
सम* ज़ह्र
ज़हर आलूदा* ज़ह्र भरी
शकूर अनवर
वाह!
ज़ह्र आलूदा हवाएँ चल रही हैं,
सरफिरा मौसम हमारे सामने है… क्या खूब लिखा है हक़ीक़त