ईर्ष्या की नद्दियाॅं बहने लगी हैं। द्वेष का संगम हमारे सामने है।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

मुफ़लिसी* का सम* हमारे सामने है।
ज़िंदगी का ग़म हमारे सामने है।।
*
अपनी ही ख़ुशियों के दुश्मन हम हुए हैं।
अपना ही मातम हमारे सामने है।।
*
हर किसी की ऑंख में ऑंसू ही ऑंसू।
इतना सबका ग़म हमारे सामने है।।
*
ज़ह्र आलूदा हवाऍं चल रही हैं।
सरफिरा मौसम हमारे सामने है।।
*
ईर्ष्या की नद्दियाॅं बहने लगी हैं।
द्वेष का संगम हमारे सामने है।।
*
थरथराते फूल उपवन में बचे हैं।
काॅंपती शबनम हमारे सामने है।।
*
नृत्य जीवन का कहाॅं ठहरा है “अनवर”।
मौत की सरगम हमारे सामने है।।
*

मुफ़लिसी*ग़रीबी
सम* ज़ह्र
ज़हर आलूदा* ज़ह्र भरी

शकूर अनवर

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
दिनेशराय द्विवेदी
दिनेशराय द्विवेदी
2 years ago

वाह!

प्रकाश सूना
प्रकाश सूना
2 years ago

ज़ह्र आलूदा हवाएँ चल रही हैं,
सरफिरा मौसम हमारे सामने है… क्या खूब लिखा है हक़ीक़त