दादी! जानकारी का चलता फिरता एनसाइक्लोपीडिया

दादी बूढ़ी जरूर थीं, मगर बुद्धिमान थीं। किसी वृद्ध या रोगी को देख कर, अरे! इसके कान, नाक टेढ़े हो रहे हैं, बता देती कितने समय का मेहमान है। युगों युगों से सुन सुन कर जो ज्ञान उन्होंने इकट्ठा किया था वह उसकी अलिखित एनसाइक्लोपीडिया थीं।

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photo courtesy kiki smith pinterest.com

-मनु वाशिष्ठ-

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मनु वशिष्ठ

अभी कुछ दिन पहले मोदी जी की मन की बात सुन रही थी, उसमें परिवार के साथ भोजन, बुजुर्गों द्वारा सुनाई गई शिक्षाप्रद कहानियों के बारे में बताया, तो मुझे भी अपनी दादी से जुड़ी कई स्मृतियां ध्यान आ गईं। हम अपनी दादी को जीया बोलती थे। सारी दादियां एक जैसी ही होती हैं। लॉक डाउन में दादी मां के नुस्खे खूब काम आए। बार बार हाथ धोना, जूते बाहर उतारना, सभी चीजों को धोकर प्रयोग करना, ऐसी कई बातें। कुछ दादियां भले ही बागबां वाली दादी बनना चाहें, लेकिन आम दादियां, दिखने में साधारण व संपदा के नाम पर उनका अर्जित किया हुआ ज्ञान, पुरानी संदूक जिसमें सहेज कर रखी हुई कुछ कपड़े, धार्मिक पुस्तकें होती हैं। चलिए, उनकी प्यारी बातें शेयर करते हैं। मां के पीटने पर, झट से दादी की गोद आज भी सब बच्चों की पसंदीदा सुरक्षित जगह है। रात को कहानी सुनना, कौन दादी के बगल में सोएगा, और दादी द्वारा छुपाकर रखी मिठाई खाना, बहुत प्रिय था। नानी की तो सभी प्रशंसा करते हैं, दादी की प्रशंसा किसी *अवॉर्ड से कम नहीं। लगता जैसे *पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया हो। क्योंकि इसमें कुछ सहयोग बहू का भी होता है।
पहली बारिश में नहाने से रोकना, उन्हें कहां पता था कि कई बार एसिडिक बारिश भी होती है। वो अपनी बातों को पुष्ट करने के लिए धार्मिक भावनाओं के साथ तर्क भी घुसा देती। एक बार मेरे आंख पर चोट लग गई, दादी ने झट से हल्दी, देशी घी और आटा मिलाकर पुल्टिस बनाई और बांध दी, सुबह तक तो सब ठीक। खून निकलने पर भीगे पानी की कपड़े की चीर (पिंचोरा), छूंछुना बांध देना, चोट पर हल्दी लगाना, जुकाम आदि में दूध में हल्दी मिलाकर पिलाना, सिंकाई करने के लिए पुल्टिस बनाना, जिन पर सब रिसर्च कर रहे हैं, दादी के रोज के फॉर्मूले थे।
कोविड-19 के समय जो क्वॉरेंटाइन का शोर मचा, पहले भी बच्चों को खसरा, चिकन पॉक्स आदि होने पर, या प्रसव के बाद, दादी करती थीं। और कीटाणुओं से बचाने के लिए नीम की पत्तियां दरवाजे, बिस्तर पर बांध कर रखती थीं। दरवाजे पर एक मिट्टी अंगीठी जैसे में धीमी आग जलाए रखती थीं, जिसमें थोड़ा गंधक डाल कर ही प्रवेश करना होता था।
छाले होने पर कहना मक्खन मिश्री खा लो, मुंह के अंदर घी लगा लो या रात को गर्म दूध में घी डाल कर पी लो, चमेली के पत्ते चबाकर थूक देना। जुकाम का स्वादिष्ट उपाय तो बहुत ही मजेदार होता था। घी गुड़ गर्म करके खाना, देशी घी की पूरी या परांठा बूरे से खाकर सो जाओ, बस एक घंटे तक पानी मत पीना। अरहर की दाल में घी जरूर डालना, नहीं तो पित्त बढ़ाएगी वगैरह वगैरह। दादी की रसोई में तो हमेशा घी को ही अहमियत दी जाती थी, अब इसे डॉक्टर वैज्ञानिक भी सही मान रहे हैं। आयुर्वेद में तो घी को, खाद्य पदार्थों में सर्व प्रथम और जरूरी माना है।
छुटपन में जैसे ही रेडियो की ऊंची आवाज करते तो फौरन ही दादी की आवाज सुनाई देती, आवाज धीमी कर ले, इस शोर की वजह से बहरी हो जाएगी। आजकल भी ईयर फोन लगाने पर दादी का यह कहना, ऊंची आवाज में संगीत सुनने से बहरा हो जाते हैं। कभी कभी सुबह दादी खिड़की से बाहर झांक कर, आसमान की ओर देखती और मौसम का हाल बता देती। कह देती- बदरा भए लाल, मेह आए हवाल। या पश्चिम में बिजली चमकने, पूर्व से पुरवाई हवा चलने पर कहती, बारिश निश्चित थी। बारिश के ओले पड़ने पर उनको भर कर रखना, उनके हिसाब से बहुत फायदेमंद था। सावन में, बैंगन, कढ़ी खाओगे तो अगले जनम में गधे बनोगे। सीधी सी बात थी, इन दिनों बेसन से गैस की शिकायत हो जाती है। रात में छत पर सोते हुए तारों के नाम, तारों की स्थिति देख समय बताते हुए किसी खगोल शास्त्री से कम नहीं होती थीं। ये ध्रुव, शुक्र, ये हिरनी, सप्तऋषियों का समूह है। अक्टूबर आते आते छत पर ओस के कारण, सोने की मना कर देती। सूर्य को तेज, यश, अग्नि से और पूर्णिमा के चंद्रमा को ठंडक, शांति से जोड़ कर देखना चांदनी में बैठने से दिमाग शांत होता है, इसी तरह और भी जाने क्या क्या। जुकाम में काढ़े का प्रयोग, बच्चे के पेट दर्द होने पर पेट पर हींग का प्रयोग तो सर्व विदित है। हींग, अजवायन, नींबू, जायफल, कायफल, लहसुन, अदरक, कालीमिर्च, शहद, गुड़ और ना जाने कितने औषधीय हथियार, उनकी रसोई में उपलब्ध थे। हाथों में जादू था जो कैसा भी दर्द हो (नाभि खिसकना,सिरदर्द या कुछ और) तुरंत ठीक करना जानती थीं।
दादी बूढ़ी जरूर थीं, मगर बुद्धिमान थीं। किसी वृद्ध या रोगी को देख कर, अरे! इसके कान, नाक टेढ़े हो रहे हैं, बता देती कितने समय का मेहमान है। युगों युगों से सुन सुन कर जो ज्ञान उन्होंने इकट्ठा किया था वह उसकी अलिखित एनसाइक्लोपीडिया थीं।
शहर में दुनिया भर के डॉक्टर मौजूद हैं, लेकिन वह मंहगे भी हैं, और दादी के शब्दों में उनके पास वो समझ, अनुभव नहीं है, किताबी ज्ञान है। छुटपन में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता था जब दादी अपने ज्ञान का प्रयोग, कम से कम एक बार ना करती हों, लेकिन फायदा भी होता था, मोहल्ले में सब पूछते भी थे। भूखे पेट भारी सामान मत उठाना नाभि खिसक जाएगी।
खाना खाने के बाद स्विमिंग करने मत जाना, मरोड़ हो जाएंगे, तुम डूब जाओगे। लेटकर, बिना रोशनी के मत पढ़ो, आंखें खराब हो जाएंगी। गीले बाल मत बांधो, जुकाम हो जाएगा। भूखे पेट वजन नहीं उठाना, खाना खाने के फौरन बाद एक्सरसाइज, स्विमिंग करने से यकीनन पेट में क्रेम्प्स (मरोड़) हो सकते हैं और वह व्यक्ति डूब भी सकता है। हालांकि कईयों का मानना है, खाने के बाद डुबकी लगाने से कुछ नहीं होता। लेकिन तथ्य यह है कि स्विमिंग जैसी सख्त एक्सरसाइज करने से पहले आपका पेट हल्का होना चाहिए, यानि भोजन पच जाना चाहिए। यह सही है कि कम रोशनी में पढ़ने से आंखों को नुकसान नहीं पहुंचेगा लेकिन आपको थकान अवश्य महसूस होगी, और पढ़ने में दिक्कत आएगी। वैज्ञानिक दशकों से यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि गीले बालों और कोल्ड का कोई संबंध नहीं है। लेकिन यह धारणा दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में आज भी कायम है। तथ्य यह है कि कोल्ड वायरस से होता है ना कि ठंडे मौसम गीले बाल या किसी और चीज से। सर्दियों में कोल्ड की वजह यह है, कि वायरस आसानी से अंदर कमरों में भी फैल जाता है, लेकिन सारे विश्व की दादियां अब भी गीले बालों पर शक की उंगली उठाए रहती हैं, पूर्व से लेकर पश्चिम तक।
बच्चों के विषय में गर्भवती स्त्री की चाल, रंगरूप, खानपान देखकर ही बता देना लड़का होगा या लड़की, यह दादियों और नानी को हमेशा प्रिय विषय रहा है। प्राचीन समय से ही इस तरह की भविष्यवाणी होती रही हैं, हालांकि इसकी सही होने की संभावना कितना सही है, कह नहीं सकते। भारत से लेकर विश्व में किसी भी देश में शायद दुनिया की सारी दादी नानी यह कहती हैं, कि गाजर खाने से आंखों कि रोशनी तेज होती है। इस मामले में दादी का उदाहरण एकदम स्पष्ट, सही भी है, उनका कहना क्या तुमने कभी जानवरों, गाय, खरगोश को चश्मा लगाए देखा है? क्योंकि वह घास, गाजर बहुत खाता है। यह कहानी किस तरह शुरू हुई यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन विज्ञान यह जरूर कहता है गाजरों में बीटा कैरोटीन होता है जो कि विटामिन ए का स्रोत है। विटामिन ए की कमी की वजह से बच्चों में अंधापन आ सकता है।
कई बार तुरंत आराम के लिए या कई बार अगर किसी की सलाह को अस्वीकार करना हो, तो उसे दादी मां का नुस्खा कह दिया जाता है। शायद यही वजह है ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में इस मुहावरे का अर्थ शायद यह दिया गया है परंपरागत विश्वास, पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त ज्ञान, जो आज गलत या गैर वैज्ञानिक भी हो सकता है।
दादी की कहानियों पर अब भी विश्वास का प्रथम कारण यह है कि, ये बातें हमें विरासत में पीढ़ी दर पीढ़ी मिल रही हैं। और उन पर विश्वास करना हमें सिखाया गया है। दूसरा यह कि पुरुष को हमेशा श्रेष्ठ और महिला को कमतर आंका गया। ऐसे में महिला भी अपना सम्मान बनाए रखने के लिए, कुछ बेहतर करना चाहती थी। ऐसे में महिला के पास घरेलू ज्ञान रह गया, और रोजी कमाने या घर से बाहर का ज्ञान पुरुषों के खाते में चला गया। इस तरह दादी की भूमिका, पुरुषों के साथ ही ज्ञान से श्रेष्ठ हो गई, क्योंकि उनमें जीवन को बरकरार रखने की क्षमता थी, जो पुरुषों के ज्ञान में नहीं थी। और यही बात दादीओं को खास बनाती है। दादी पर लिखने को तो इतना है कि बस पूछो ही मत।
आजकल टीवी, साइंस और गूगल ने बूढ़ी दादी नानीयों को बेरोजगार कर दिया है, सब सर्च जो कर लेते हैं, और बच्चे भी दूर रहते हैं। बहरहाल दिलचस्प बात यह है कि दादी, नानी की कहानियां या नुस्खे दुनिया भर में एक जैसे ही रहे हैं। मेरी बातों से शायद सभी सहमत भी होंगे।

_ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

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Sanjeev
Sanjeev
2 years ago

वाह क्या बात है, आपने तो संस्कार के साथ ज्ञान भी भी बांटा है, ये तो गागर में सागर है, वाकई आपके पास लेखनी का चमत्कार के साथ जमीनी स्तर का ज्ञान भी अभूतपूर्व है, आशा है नई पीढ़ी के साथ इसको आप इसे ही बांटती रहेंगी ।

Manu Vashistha
Manu Vashistha
Reply to  Sanjeev
2 years ago

हार्दिक धन्यवाद

Neelam
Neelam
2 years ago

पीढ़ी दर पीढ़ी हम महिलाओं को ये बातें सीख और जानकारी के रूप मे मिलती रहीं। आपकी पोस्ट पढ़ने की लालसा बनी रहती है।धन्यवाद

Manu Vashistha
Manu Vashistha
Reply to  Neelam
2 years ago

हार्दिक धन्यवाद