…वरना देवभूमि को दैन्यभूमि में बदलते देर नहीं लगेगी

जनवरी अंत और फरवरी-मार्च में अभी बर्फ़ और पड़ेगी और प्लास्टिक का यह सारा कचरा इसमें दब जाएगा। लेकिन अप्रैल से जब बर्फ़ पिघलनी शुरू होती है तो छोटी-छोटी फूलों संग हरी मखमली घास से भरी मोरपंख सी प्रतीत होती यह धरती प्लास्टिक कचरे के इस दाग़ को कैसे छुपा पाएगी , यह कोई नहीं सोचना चाहता !!

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-प्रतिभा नैथानी-

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प्रतिभा नैथानी

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित “औली” एक छोटा सा हिल स्टेशन है। समुद्र तट से लगभग ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह ख़ूबसूरत वादी इन दिनों बर्फ़ से ढ़की हुई है।
औली पहुंचने पर सबसे पहले स्वागत करता है गढ़वाल मंडल विकास निगम का स्की रिसॉर्ट । कुछ सीढ़ियों का सफर तय करने के बाद आपके लिए सुविधा है चेयर लिफ्ट की। उसी के माध्यम से तो आपको आरोहण करना है इस स्वर्ग पर।

चेयर लिफ्ट से उतर कर आगे बढ़ने पर बर्फ़ पर पड़ रही धूप ऐसी लगती है जैसे चांदी के रंग वाली कोई परी अपने सुनहरे पंख फैलाए बुला रही है आपको अपने पास। स्कीइंग वाले आपके इंतज़ार में खड़े हैं। टायर पर लेटकर फिसलते हुए लोगों के लिए बने-बनाए रास्ते से परे गहरी बर्फ़ में जिधर पांव घुसा लें उधर ही रास्ता बन जाने का खेल भी अच्छा है।
कहीं मैदान, कहीं घाटी का दृश्य उपस्थित करती इन हसीन वादियों में एक जमी हुई झील भी है। विंटर गेम्स के लिए कृत्रिम बर्फ़ तैयार करने के उद्देश्य से उत्तराखंड पर्यटन ने इसका निर्माण करवाया है।
ठंड बहुत है मगर चटख धूप में ज़्यादा महसूस नहीं होती। चलते-चलते गला सूख रहा है तो पानी पी बिसलेरी की खाली बोतल कहीं भी फेंक अपना बोझ कम हुआ जान राहत की सांस लेते पर्यटकों को अब भूख भी महसूस होने लगी तो वह मैगी प्वाइंट की ओर आएंगे ।
मैगी और चाय का स्वाद लेते पर्यटकों की संख्या के साथ ही जूठे प्लास्टिक कप और फटे रैपर्स का ढ़ेर भी वहां फैलता हुआ नज़र आ रहा है। दुकान छोटी है इसलिए अपनी बारी का इंतज़ार करते बाकी लोग चिप्स,बिस्कुट,नमकीन खाकर बर्फ़ पर चहलकदमी का आनंद ले रहे हैं।
जनवरी अंत और फरवरी-मार्च में अभी बर्फ़ और पड़ेगी और प्लास्टिक का यह सारा कचरा इसमें दब जाएगा। लेकिन अप्रैल से जब बर्फ़ पिघलनी शुरू होती है तो छोटी-छोटी फूलों संग हरी मखमली घास से भरी मोरपंख सी प्रतीत होती यह धरती प्लास्टिक कचरे के इस दाग़ को कैसे छुपा पाएगी , यह कोई नहीं सोचना चाहता !!
आसमान ने बर्फ़ की नेमत बरसा कर इसे स्वर्ग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, और हम हैं कि जहरीला कचरा जहां-तहां छोड़कर इसे नर्क बनाने पर तुले हुए हैं।
पर्यटक स्थलों की सेहत दुरुस्त रहनी चाहिए वरना देवभूमि को दैन्यभूमि में बदलते देर नहीं लगेगी।

यह अनुभव पिछले साल का है। यहां पहुंचने के लिए होकर गुजरने वाले शहर जोशीमठ में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। औली भी ख़तरे में आ जाएगा। सोचा ना था कि पहला दर्शन ही आखिरी दर्शन साबित होगा इस स्वर्ग का।

(प्रतिभा नैथानी कवयित्री, लेखिका और डिजिटल क्रियेटर हैं)

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

प्रकृति से छेड़छाड़ मनुष्य जाति के सर्वनाथ की दिशा और दशा का जीता जागता उदाहरण देवभूमि जोशीमठ शहर है जहां अंधाधुंध प्राकृतिक दोहन, पहाड़ों से छेड़छाड़ और मनुष्यों का नैसर्गिक लोक में अत्यधिक दखलंदाजी है. पर्यटक पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने,बर्फबारी से आनंदित होने के लिए पहाड़ों का रुख करते हैं लेकिन वह प्लास्टिक कचरा जगह जगह छोड़ आते हैं इससे पहाड़ों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है और आती है हिमखंडो के फिसलन, बादल फटने जैसी आपदा . इसलिए जागरूक बनिए, प्रकृति से सामंजस्य बनाए रखिए