
-विष्णुदेव मंडल-

चेन्नई। यह आम परंपरा है कि सत्ताधारी दल या मुख्यमंत्री द्वारा तैयार अभिभाषण ही राज्यपाल विधानसभा के पटल पर पढते हैं जिनमें सत्ताधारी दल अपने किए कल्याणकारी योजनाएं और भविष्य की रूप रेखाओं के बारे में अपना विजन रखते हैं। राज्यपाल ठीक वैसे ही पढ़ते हैं जैसा कि उन्हें सरकार द्वारा लिख कर दिया जाता है। लेकिन तमिलनाडु विधानसभा में डीएमके सरकार द्वारा प्रस्तुत अभिभाषण को पढ़ते वक्त राज्यपाल आर एन रवि ने ऐसा नहीं किया। राज्यपाल ने अभिभाषण के कई मूल अंश को पढ़ने के बजाए अपने मन से कुछ अंश जोड़ दिए जिसके कारण सत्ताधारी दल डीएमके और उनके सहयोगी एमडीएमके, पीएमके, कांग्रेस, वीसी, और बामदलों ने सदन में भारी विरोध किया।
फिर राज्यपाल आरएन रवि विधानसभा से वाकआउट कर गए उनके पीछे बीजेपी के विधायक और प्रमुख विपक्षी दल एआईएडीएमके के विधायकों ने भी सदन से बाहर निकल गए।
तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि और सत्ताधारी डीएमके के बीच विवाद महीनों से जारी है। पिछले दिनों राजभवन में राज्यपाल आर एन रवि ने तमिलनाडु का नाम बदलकर तमिलझम रखने की सुझाव दिया था, उसके बाद से डीएमके सरकार के मंत्री और सांसद राज्यपाल की आलोचना कर रहे थे।
बहरहाल तमिलनाडु विधानसभा में राज्यपाल द्वारा अभिभाषण के प्रमुख अंश छोड़ देने की चर्चा से तमिलनाडु की राजनीति फिर से गरमा गई है।
यहां उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु सरकार ने अभिभाषण में द्रविड राजनीति के पुरोधा पेरियार, अन्ना,कैलेंझनर करूणानिधि और कामराजर का तमिलनाडु के विकास में योगदानों का जिक्र किया गया था, जिसे राज्यपाल ने नहीं पढा। उसकी जगह 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को युवा दिवस के रूप में मनाने का जिक्र किया। श्रीलंका नौ सेना द्वारा भारतीय 232 मछुआरों को छुड़ाने का जिक्र किया। तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार मिलकर कोरोना से सफलतापूर्वक काबू पाने का जिक्र कर दिया जो सरकार द्वारा अनुमोदित भाषण में उल्लेखित नहीं था। बकौल डीएमके और सहयोगी दलों के विधायकों ने सदन में ही राज्यपाल के खिलाफ स्लोगन पढ़ने लगे अपने तरफ मुखर होते डीएमके और अन्य विधायकों को देखकर राज्यपाल आरएन रवि सदन से बाहर निकल गए। इसके अलावा द्रविड़ दलों द्वारा किए गए कार्यों के बखान के सभी पैराग्राफ राजपाल आर एन रवि ने नहीं पढ़े जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष अप्पावु ने राज्यपाल के इस आचरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र और संविधान के लिए ठीक नहीं है। एक चुनी हुई सरकार जब अपने शासन में कार्य योजना और जनहित में की गई लोक कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जनता तक पहुंचाना चाहती है उससे केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए राज्यपाल पढ़ने से मना कर देना अपराध नही तो क्या है?
वहीं भाजपा के तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष अन्नामलाई ने राज्यपाल द्वारा पढ़ी गई अभिभाषण पर अपना राय रखते हुए कहा कि तमिलनाडु विधानसभा के सदन पटल पर राज्यपाल द्वारा डीएमके के उन अंश को छोड़ा गया जो बिल्कुल झूठ और भ्रामक थी। विधानसभा पटल पर वही अभिभाषण पढ़ा जाना चाहिए जो सच और आमजन के लिए हो। डीएमके पार्टी का इवेंट की तरह अभिभाषण पढ़ाना कदापि उचित नहीं है इसलिए राज्यपाल उन तथ्यों को उजागर नहीं किया जो असत्य और प्रचार के लिए थे। मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश के चंद्रू ने राजपाल आर एन रवि द्वारा विधानसभा में अभिभाषण में सरकार द्वारा लिखित अभिभाषण को नहीं पड़ने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि राज्यपाल का आचरण बिल्कुल संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ है। एक चुनी हुई सरकार यदि जन कल्याणकारी योजना और आगामी योजनाओं के बारे में आमजन को अवगत कराना चाहती है तो उस अभिभाषण को काट- छा़टकर प्रस्तुत करना चिंताजनक और और असंवैधानिक है। वही ं विधानसभा में प्रमुख प्रमुख विपक्षी पार्टी एआईएडीएमके के अंतरिम महासचिव एडापाडि पलनीस्वामी ने सत्तापक्ष के रवैये पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार जो अभिभाषण राज्यपाल के समक्ष पढ़ने के लिए दी थी वह बिल्कुल भ्रामक और असत्य है इसलिए राज्यपाल ने उनको छोड दिया जो बिल्कुल तथ्य और तर्कहीन थे।
राज्यसभा सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने राज्यपाल के इस रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्यपाल केंद्र सरकार का मुखौटा है। डीएमके सरकार को जनता ने चुना है, और जनता के लिए किए गए कार्यों का बखान करना सरकार का अधिकार और कर्तव्य है। जनता के पक्ष में किए गए कार्यों को जन-जन तक पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी भी है ,ऐसे में सरकार द्वारा दिए अभिभाषण को राज्यपाल द्वारा नहीं पढ़े जाना चिंताजनक है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा क्या केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई चिट्ठी को राष्ट्रपति नहीं पढ़ते।
(लेखक तमिलनाडु के स्वतंत्र पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)