मिलनसारी तुम्हारी और कुछ है। तुम्हारी हमसे यारी और कुछ है।।

shakoor anwar 00
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

मिलनसारी तुम्हारी और कुछ है।
तुम्हारी हमसे यारी और कुछ है।।
*
हमारा जो जुनूॅं* है सामने है ।
तुम्हारी होशियारी और कुछ है।।
*
तुम्हारा सैर को जाना भी धोखा।
तुम्हारी घुड़ सवारी और कुछ है।।
*
ज़रा देखो समंदर का नज़ारा।
यहाॅं की चित्रकारी और कुछ है।।
*
जो दिखते हो तुम ऐसे तो नहीं हो।
तुम्हारी इंकसारी* और कुछ है।।
*
वहाॅं तुम हो उदू* भी साथ में है।
यहाॅं हालत हमारी और कुछ है।।
*
अमीरे शहर* अब सुनता कहाॅं है।
अब उसकी शहरयारी*और कुछ है।।
*
निगाहें और कुछ कहती हैं “अनवर”।
नज़र की बेक़रारी और कुछ है।।
*

जुनूँ* दीवानगी
इंकसारी* विनम्रता,
उदू* दुश्मन, प्रेमिका से प्रेम करने वाला,
अमीरे शहर* शहर का हाकिम,
शहरयारी* हुकुमत, बादशाही,

शकूर अनवर

9460851271

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Deepesh Joshi
Deepesh Joshi
2 years ago

वाह वाह।
महज़ कागज़ और कलम का कमाल नहीं,
ग़ज़ल की ये फनकारी और कुछ है।