इतवार का दिन
-डॉ अनिता वर्मा-

इतवार का दिन फिर आ गया
पिछ्ले छह दिनों के ब्यौरे लिये
घास से ढके बगीचे के बीच ,
चाय का कप और अखबार हाथ में लिये
बैठ गई हूँ विगत स्मृतियों के साथ
चलचित्र की तरह दैनिक घटनाएँ
गुजर रही हैं मेरे भीतर
अजब व्यवहार और मनोविज्ञान
लोगों के आचरण अनावृत हो रहे हैं
मेरी आँखों के सामने
लोगों के भीतर की ग्रंथियाँ
अनसुलझी पहेलियां है मेरे लिए
मेरे मन मस्तिष्क से परे हैं
उनकी अजब गुत्थियां ,
मेरी दृष्टि पहुंच नहीं पाती वहाँ तक
चाहकर भी, जहाँ वे खड़े है ,
पता नहीं कहाँ कुछ छूट गया है
जिसे मैं पकड़ नहीं पाती लोगों की तरह
शायद यह मेरे परिवेश और संस्कार ही हैं
जो बनाएं रखते हैं मेरा आत्मविश्वास ,
इन अजब सी पहेलियों के बीच
इस चिंतन के बीच बहने लगी है ठंडी हवा
तेज झोकों के साथ टिप टिप ,,,,,,,,,!
बारिश की इन बूंदों के साथ
भीग गया है अन्तर्मन
धुल गई है सारी अन्यमनस्कता
भीतर से धीरे-धीरे ,
पक्षियों की चहचहाट सुनाई दे रही है
इतवार का यह दिन ,
फिर आ गया है अनेक स्मृतियाँ
छह दिनों की जीवन्त हो गई हैं
मेरे भीतर विगत दिनों की गठरी ,
खुलने लगी है धीरे-धीरे
लो इतवार का दिन फिर आ गया,,,,,,,,,!!
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-डॉ अनिता वर्मा-
– सह आचार्य (हिन्दी विभाग), राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा (राज.)
इतवार का दिन ,मानव जीवन की जीवंत कहानी को बयां कविता है.दिन आते हैं दिन जाते हैं और छोड़ जाते हैं अनकही बातें,यही लक्ष्य कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है