
-मनु वाशिष्ठ-

सुन के रहट की आवाजें, यूं लगे कहीं शहनाई बजे।
आते ही मस्त बहारों के, दुल्हन की तरह हर खेत सजे।
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती …
1967 में आई उपकार फिल्म का यह गाना सबने सुना होगा, दशकों से आज भी पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को अवश्य ही बजता हुआ सुनाई दे जाता है। बात यहां गाने की नहीं, बात हो रही है “रहट” की। गाने में एक शब्द है “रहट”, आप में से कितने लोग हैं जो इस रहट के बारे में जानते हैं। आज की अस्सी नब्बे प्रतिशत युवा पीढ़ी तो जानती भी नहीं होगी, बाकी दस बीस प्रतिशत भी जो गांव में रहती है वह ही परिचित होगी।
रहट कुएं से पानी निकालने का एक प्राचीन पारंपरिक यंत्र, जिसमें लकड़ी का एक बड़ा पहिया जैसा होता था। जिसमें एक रस्सी में पानी भरने की डोलचियों (bucket type) की एक माला जैसा बनाकर, कुएं में उतारा जाता और वह गोल गोल चलता रहता था। डोलचियां नीचे से पानी भरकर लाती थीं और वापिस नीचे जाते हुए उलटी होकर पानी खाली कर देती थीं जो कि हौद से नालियों द्वारा खेतों में पहुंचता था। इसे बैलों द्वारा खींचा जाता था और खेतों को सींचा जाता है। रहट कुएं से पानी निकालने का ऐसा एक उपकरण था जिससे पर्यावरण की सुरक्षा भी होती थी और बिजली या डीजल की बचत भी।
लेकिन अब ये रहट की आवाजें कहीं सुनाई नहीं देतीं, यह भूली बिसरी यादें बन चुका है। पहले कुएं बनवाना पुण्य कार्य माना जाता था, मुहूर्त देखकर ऐसे कार्य संपन्न किए जाते थे। कुएं खुदवाने वाले व्यक्ति बहुत सम्मानित माने जाते थे। हमारे यहां भी दो कुएं थे एक हवेली में और एक बाहर पुरुषों की बैठक (नोहरे) पर। अब दोनों ही बंद हो गए हैं। घर घर नल पहुंच गए हैं, सिंचाई की सुविधा हो गई है, हालात बदल गए हैं तो कुएं भी सूख गए/भर गए हैं, या उपयोग ना होने से बेकार हो गए हैं। अब कुओं के पनघट पर चहल पहल दिखाई नहीं देती, और वक्त के साथ ही रहट के गायब होने से वो शहनाई की आवाज, जिसका गाने में जिक्र है, बैलों की जोड़ी और घुंघरू की आवाज सब गायब हो गई है। और साथ ही गायब हो गई है कुआं पूजन की प्रथा। उत्तर भारत में बच्चा होने पर कुआं पूजन की प्रथा थी, प्रथा तो अब भी है लेकिन अब नलों/ट्यूब वेल आदि को ही पूज कर इति श्री कर ली जाती है। कुएं, रहट सिंचाई तकनीक से अब लोग परिचित भी नहीं हैं। रहट की शहनाई के स्थान पर अब सन्नाटा पसर गया है।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान
एक समय था जब सिंचाई के लिए गांव के बाहर जगह जगह रहट लगे होते थे,आज इनके अवशेष भी देखने को नहीं मिलते हैं, ऐसे में आज की पीढ़ी से रहट की आवाज की बात करना बेनामी है