मैं बनाता हूँ तुम्हारा चित्र

women

-रामस्वरूप दीक्षित-

ram swaroop dixit
रामस्वरूप दीक्षित

मैं बनाता हूँ तुम्हारा चित्र

रंग और कूची से नहीं
दिल के कैनवास पर
उकेर लेता हूं तुम्हें

कुछ ही देर में
चित्र हो उठता है सजीव

दिल के सागर में
उठने लगती हैं
उत्ताल तरंगें

इतराती बल खातीं
ऊपर नीचे होतीं

तुम्हारे चेहरे की ऊष्मा
उसके भीतर का नमक
घुलने लगता है मुझमें

जैसे घुलती है
अंधेरे में चांदनी
और कर देती है
उसे दूधिया

जैसे दूब के फुनगे
पहने ओस की बूंदों का साफा
बनते है उषा के बाराती

वैसे ही तुम्हारा चेहरा
लालिमा की चुनर ओढ़
रिझाता है मुझे

चित्रातीत है तुम्हारा चेहरा
रंग शर्माकर रह जाते हैं
कूची नहीं छोड़ना चाहती
उस पर अपना खुरदरापन

मुझे कुछ नहीं सूझता
मैं आहिस्ता आहिस्ता
सोख लेता हूँ उसे
अपनी आंखों में
रामस्वरूप दीक्षित

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