पत्र का पत्रनामा

patra
photo courtesy unsplash.com

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

यत्र कुशलम् तत्रास्तु, से शुरू
थोड़े लिखे को बहुत समझना से खत्म।
जिनको पढ़, पाठक उन्हीं भावनाओं में बह जाए,
कुछ प्रेषित पत्र पाठ्यक्रम का हिस्सा हो गए,
कुछ #अप्रेषित पत्र बेस्टसेलर किताब बन गए।
पत्र__
जिसमें समाए थे, मन के उदगार
समुद्र सी गहराई, भावनाएं हजार
किसी का रोजगार
अम्मा का इंतजार
प्रिय के प्रेम का इजहार
या दूर परदेस से आए
प्रियतम की विरह वेदना,
और जल्दी आने के समाचार
पत्र__
जिसमें लिखी दास्तां
और अफसाने हजार
बहन भाई का प्यार
जिससे जुड़े हैं भावों के तार
डाकिए की घंटी सुन,
भरी गर्म दोपहर में
निकल आते थे बाहर
पूछते थे, चिट्ठी आई है?
नहीं होने पर हो जाते उदास
पत्र__
प्रियजन के संदेश
बुजुर्गों की आस, विश्वास
पत्र की विशेष बनावट देख
या फिर छिड़के हुए इत्र की महक
ओट में खड़ी बाला की चूड़ियों की खनक
समझ जाते थे, घर के बड़े, बुजुर्ग,
तसल्ली होने पर,
नाम लेकर बुलाते काका, चाचा
और थमा देते,
पत्र __
घूंघट की ओट लिए बहू को
जो खोई है, निज खयालों में
पति गए हैं करन व्यापार
इंतजार कर रही बेटी को
जिसके पति हैं तैनात सीमा पर
अगर हाथ लग गया
पत्र__
छोटी बहन या देवर के
फिर तो फरमाइश पूरी
करने पर ही पाती मिल पाती है,
मां भी छेड़ने से
कहां बाज आती है।
वो दिन पूरा खुशी में ही बीतता
पत्र__
एक बार पढ़, फिर #बारबार पढ़
मन उन्हीं भावनाओं में बह जाता
कैसे भेजें संदेश
दूर गया पति,अब पिता बनने वाला
परेशान ना हो, इसलिए
छोटे मोटे दुखों का नहीं दिया हवाला
पत्र__
होली, दिवाली, राखी की
बख्शीश खत्म हुई,
और अब पत्र लिखना हुआ इतिहास
और थम गए हों जैसे,
चाय के साथ
डाक बाबू के अपनेपन का अहसास।

पत्र का ये सिलसिला,
कबूतर से शुरू हुआ,
पत्रवाहक, टेलीग्राम,
फोन, मोबाइल से होता हुआ
बतख (ट्विटर) तक पहुंच गया।
लेकिन पत्रों जैसी मिठास कहां!

पोस्टकार्ड, खुली किताब हुआ करता था, फिर अंतर्देशीय पत्र, थोड़ी प्राइवेसी लिए, या थोड़ी ज्यादा प्राइवेसी के साथ एनवलप, क्योंकि कई बार कुछ #शैतान खोपड़ी, अंतर्देशीय पत्र को भी बिना खोले पढ़ने का हुनर जानते थे, इसलिए #लिफाफा, जिसमें आप कुछ रख भी सकते थे। टेलीग्राम का नाम सुनते ही सब घबरा जाते थे। क्योंकि यह किसी आपात घोषणा जैसा ही होता था, जन्म, मरण, सेना या नौकरी का बुलावा। लेकिन जो बात उन पत्रों में थी, वो आज के मैसेज में कहां? आज भी जब घर जाती हूं, तो घर के कोने में तार को मोड़ कर बनाए #पत्रहैंगर को नहीं भूल पाती। उसमें कई तो पचास, साठ साल पुरानी चिट्ठियां भी हैं। जिन्हें पढ़ने का आनंद कुछ और है। कई बार तो #सबूत की तरह भी पेश किए जाते थे। आज तो इधर खबर आई, उधर #डिलीट किया।

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Neelam
Neelam
2 years ago

क्या बात है।पोस्ट पढ़ने के साथ साथ यादों में ही डूबने उतराने लगे। पत्र की प्रशंसा में शब्द ही नहीं सूझ रहे।आपका बहुत बहुत आभार

Manu Vashistha
Manu Vashistha
Reply to  Neelam
2 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया ????

Sanjeev
Sanjeev
2 years ago

पुरानी स्मृतियों को पिरोने की कला में आप माहिर है, मां सरस्वती की असीम कृपा है, यादों का सफर बेहतरीन कारनामा, शुभकामनाएं

Manu Vashistha
Manu Vashistha
Reply to  Sanjeev
2 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद ????