
-डॉ.रामावतार सागर-

रूबरू तो है मगर मेरा नहीं है
अक्स तो है पर कोई चेहरा नहीं है
देखकर हँसता मुझे वो बोल बैठे
घाव तो है पर अधिक गहरा नहीं है
ये हमारे दौर का सच जान लेना
वो हमारा है मगर पूरा नहीं है
लाख साबित हो गया था जुर्म उनका
जेल में उन पर कोई पहरा नहीं है
देख लेना जान लेवा खेल है ये
जो समझते इश्क में खतरा नहीं है
इक समंदर दफ्न है सहरा के भीतर
पर समंदर में कोई सहरा नहीं है
आज सागर याद उनकी आ गयी फिर
दूर जाकर जो मुझे बिसरा नहीं है
डॉ.रामावतार सागर
कोटा, राज.
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