
-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। राजस्थान के कोटा में 129वां दशहरा मेले में आज हजारों लोगों के विशाल जनसमुदाय की उपस्थिति के बीच ‘असत्य पर सत्य’ की विजय के प्रतीक स्वरूप दशानन रावण संहिता कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया गया। कोटा के दशहरा मेला स्थल पर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी के प्रतिनिधि के रूप में पुतलों के दहन की प्रक्रिया को पुरानी परंपरा के अनुसार कोटा के पूर्व राज्य परिवार के मुखिया इज्यराज सिंह ने निर्वहन किया।

इसके पहले पूर्व कोटा रियासत के महाराव इज्यराज सिंह और उनके परिवार की मेजबानी में गढ़ पैलेस सिटी पैलेस में ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार शाही ठाठ-बाट के साथ दरी खाना का आयोजन किया गया जिसमें पूर्व रियासत के कई राजपूत ठिकानेदार-जागीरदार परंपरागत वेशभूषा में सम्मिलित हुए। पूर्व राजपरिवार की ओर से आमंत्रित अतिथियों के अलावा कोटा के लगभग सभी वरिष्ठ पुलिस-प्रशासनिक एवं दोनों कोटा नगर निगम के अधिकारी इस अवसर पर उपस्थित थे।
राजसी परंपरा के अनुसार दरी खाना के आयोजन के बाद पूर्व राजपरिवार के महाराव इज्यराज सिंह, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कल्पना देवी, उनके पुत्र कुंवर जयदेव सिंह के राजपुरोहित के निर्देशन में भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा-अर्चना के बाद सेना,पुलिस राजस्थान सशस्त्र पुलिस बल (आरएसी) के बैंड सहित अन्य निजी बैंड-बाजे वालों के बैंड़ की धुनों के साथ उनकी सवारी गढ़ पैलेस से पूरे वैभव के साथ रवाना हुई। सवारी के सबसे आगे ध्वज थामें शस्त्रों से सुसज्जित घुड़सवार चल रहे थे और उनके पीछे अलग-अलग दलों में लोक कलाकार अपनी पारंपरिक और नयनाभिराम कला की प्रस्तुति देते हुए इस जुलूस की शोभा बढ़ा रहे थे जिसे देखने के लिए गढ़ पैलेस से लेकर किशोरपुरा स्थित दशहरा मैदान तक सड़क के दोनों तरफ़ हजारों की संख्या में लोग उमड़े हुए थे। इसके अलावा दशहरा मैदान के श्री राम रंगमंच पर आयोजित रामलीला के कलाकार भी रथ में सवार होकर शोभा यात्रा में शामिल हुए।
वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पिछले दो सालों से कोटा में इस राष्ट्रीय दशहरा मेला का आयोजन नहीं हो सका था। तीसरे साल इस बार मेले का आयोजन से लोगों में जबरदस्त उमंग व उत्साह देखने को मिला।
भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की गढ़ पैलेस से लेकर किशोरपुरा स्थित दशहरा मैदान स्थल तक पहुंचने के दौरान पुलिस की ओर से सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे।
भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की सवारी की धूमधाम के साथ दशहरा मेला में रावण दहन स्थल पर रात्रि करीब 8 बजे बाद पहुंचने पर कोटा नगर निगम (उत्तर) की महापौर और मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष श्रीमती मंजू मेहरा की अगुवाई में आयोजन समिति के सदस्यों और दोनों नगर निगम के आयुक्त राजपाल सिंह, वासुदेव मालावत सहित अन्य अधिकारियों ने विजयश्री रंगमंच के सम्मुख भगवान की सवारी और कोटा रियासत के पूर्व राजपरिवार के प्रमुख इज्यराज सिंह,उनके पुत्र जयदेव सिंह और अन्य सदस्यों की अगवानी की। इस अवसर पर उनके साथ कोटा के पूर्व ठिकानेदार-जागीरदार भी उपस्थित थे।
पूर्व सांसद श्री इज्यराज सिंह फूलों से सजी खुली जीप में सवार होकर पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचे थे और उन लोगों का अभिवादन करते-स्वीकारते चल रहे थे। रावण दहन स्थल पर पहुंचने के बाद श्री इज्यराज सिंह ने ज्वार, माता सीता और कलश पूजन किया। इसके बाद उन्होंने भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी के प्रतिनिधि के रूप में अमृत कलश का भेजन कर रावण के पुतलों ोरका दहन किया। सबसे पहले रात करीब 8:10 बजे कुंभकरण के पुतले का दहन किया। इसके उपरांत मेघनाथ के पुतले का दहन हुआ और सबसे अंत में 75 फीट ऊंचे दशानन रावण के पुतले का दहन किया गया। लगभग पांच ही मिनट में तीनों पुतले जलकर खाक हो गए। दहन की प्रक्रिया के दौरान ही भव्य और आकर्षक आतिशबाजी की गई। इस मौके पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे और
किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना की आशंका को देखते हुए फायर बिग्रेड की गाड़ियों को पुतला दहन स्थल के आसपास तैनात किया गया था। बड़ी संख्या में वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने पुतला दहन स्थल से लोगों की दूरी बनाए रखी ताकि इस दौरान किसी को कोई चोट पहुंचने की आशंका ना रहे।
सनातन संस्कृति में मनुष्य की मृत्यु पश्चात मृतक का दाह संस्कार कर दिया जाता है, तत्पश्चात अन्य लौकिक अनुष्ठान किये जाते हैं।ऐसा समझा जाता है । आम धारणा है मृत व्यक्ति के दुर्गुणों को नजरंदाज कर दिया जाये,क्योंकि वह अब इस लोक में नहीं है। लेकिन लंकापति रावण के राम रावण युद्ध में वीरगति पाने के पश्चात, रावण के दुष्कर्मों को आज भी भारतीय समाज में विजयादशमी पर्व पर नाटक, रामलीला आदि के माध्यम में , बुराई पर भलाई की जीत के रूप में प्रचारित,प्रसारित किया जाता है। मेरी दृष्टि से रावण की मृत्यु पश्चात ,परंपरा अनुसार, इसकी बुराईयों को भूलकर , पुतले के दहन की परंपरागत को बंद कर देना चाहिए