बनाके ताज महल जिनके हाथ कटते हों। तू ऐसे हाथों को पहले से बे हुनर करदे।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

तू मेरे नाम को दुनिया में मुश्तहर* कर दे।
हयात चाहे मेरी और मुख़्तसर* कर दे।।
*
जिसे भी चाहे तू देना सिकंदरी* देदे।
जिसे भी चाहे ज़माने में दर- ब – दर करदे।।
*
अब और भूख से ग़ुरबत से लड़ नहीं सकते।
ये मार्का* भी बहुत सख़्त है तू सर करदे।।
*
बनाके ताज महल जिनके हाथ कटते हों।
तू ऐसे हाथों को पहले से बे हुनर करदे।।

यही हो मसलेहते* फ़िक्रे शायरी “अनवर’।
क़लम से शेर वो निकले जो ऑंख तर करदे।।
*

मुशतहर* प्रचारित
मुख़्तसर* संक्षिप्त
सिकन्दरी* बादशाहत वैभव
मार्का* युद्ध
मसलेहते फ़िक्रे* ख़ूबी, पॉलिसी

शकूर अनवर

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

शायर शकूर अनवर ने ग़ज़ल की चार पंक्तियों में जिंदगी की सच्चाई बयां कर दी है