
-डॉ विवेक कुमार मिश्र-

चाय पर आदमी संसार को जीता
और संसार रचता रहता
एक चाय है जो अर्थ से जोड़ देती
चाय फीकी हो या मीठी
इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता
चाय है तो दुनिया का जुड़ाव सहज ही हो जाता
एक चाय पर
दुनिया अनेकशः अर्थ लिए आ जाती है
चाय सीधे सीधे संसार से संवाद करना सीखाती
खाली बैठे आदमी को
दुनिया के मसले पर विचार के लिए उकसा देती
चाय पीते पीते विचार यात्रा में
चल पड़ना शामिल हो जाता
एक आदमी चाय पीते पीते
संसार भर की बातों से अपने को जोड़ लेता
यह केवल पेय नहीं है
न ही चाय पीना आदत का हिस्सा
पर चाय पीते हुए आदमी
संसार को इस तरह देखना शुरू करता कि
इससे पहले संसार देखा ही न हो
और यहीं से संसार उसकी दुनिया में
विचारों में और विमर्श में ….
इस तरह घुल मिल जाता कि
चाय पर संसार ही चलने लगता है ।
कड़क चाय
फीकी पर कड़क चाय
संभाल कर रखती है चाय का अर्थ
चाय के साथ जीवन के तमाम संदर्भ
किस्से कहानी और वह सारा संसार
जो एक चाय के साथ
आदमी के संसार में उठते बैठते आ जाता
जहां कहीं दो चार आदमी होते
वहीं से चाय की पुकार लग जाती
यहां चाय बातचीत का जरिया समय के सवालों
और उत्तर के खोज की कोशिश में लगे
मन की कथा भी कहने लगती
चाय अपने पूरे संदर्भ को लिए हुए फीकी होने पर भी
कड़क अंदाज में विचार विमर्श के लिए शुरू हो जाती
दिमाग के खिड़की दरवाजे खुल जाते
एक चाय को केवल चाय भर कहकर टाला नहीं जा सकता
चाय के साथ विचार यात्रा और दुनिया होती है।
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)