
-मनु वाशिष्ठ-

सुना है!
चुनाव का मौसम है,
गरीबों के भी चूल्हे सुलगने लगे हैं।
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सुना है!
खुशहाली के झांसे से
झुग्गी झोपड़ियों में कदम बहकने लगे हैं।
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सुना है!
झूठ के पांव नहीं होते,
फिर भी जिंदगी रफ्तार पकड़ती है।
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सुना है!
घर/संसद एक मन्दिर है,
जहां लालच की खिचड़ी पकती है।
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सुना है!
तारीफों के पुल के नीचे,
अक्सर मतलब की नदी बहती है।
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सुना है!
सबका तारणहार एक है,
लेकिन धर्म के ठेकेदार तो हजार हैं।
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_ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान
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क्या बात है, आपने तो चंद अल्फाजों में दुनिया की रीत जाहिर कर दी, वैसे भी दुनिया भर की लफ्फाजी सुना है से ही शुरू होती है हा हा हा
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