सुना है …

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प्रतीकात्मक फोटो अखिलेश कुमार

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

सुना है!
चुनाव का मौसम है,
गरीबों के भी चूल्हे सुलगने लगे हैं।
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सुना है!
खुशहाली के झांसे से
झुग्गी झोपड़ियों में कदम बहकने लगे हैं।
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सुना है!
झूठ के पांव नहीं होते,
फिर भी जिंदगी रफ्तार पकड़ती है।
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सुना है!
घर/संसद एक मन्दिर है,
जहां लालच की खिचड़ी पकती है।
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सुना है!
तारीफों के पुल के नीचे,
अक्सर मतलब की नदी बहती है।
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सुना है!
सबका तारणहार एक है,
लेकिन धर्म के ठेकेदार तो हजार हैं।
__________
_ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

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Sanjeev
Sanjeev
2 years ago

क्या बात है, आपने तो चंद अल्फाजों में दुनिया की रीत जाहिर कर दी, वैसे भी दुनिया भर की लफ्फाजी सुना है से ही शुरू होती है हा हा हा

Manu Vashistha
Manu Vashistha
Reply to  Sanjeev
2 years ago

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