-रंजना प्रकाश –

(लेखिका, कवय़ित्री)
सुबह-सुबह बस यूं ही
इक ख़याल आया और
मैंने पति देव से कहा ,,,
ए ! सुनो जी ,,,,
अगर मैं नहीं ,ब्याह के बाद
तुम मेरे घर आते तो
क्या होता ,सोचो सोचो ज़रा
वो मुस्काए ,अचकचाए,कुछ
ज़रा सा बौखलाए , मुझे घूरा
फिर बोले, क्या बेतुका सवाल है
वो भी ,,, सुबह-सुबह पांच बजे
सो जाओ और सोने दो
मैंने गलबहियां डाली, कानों में फुसफुसाई
मैं बताऊं ,,,गर घर मेरे तुम आते तो
ये तय है जैसा अब है, वैसा तो बिल्कुल न होता
भीषण शीत, विकट वर्षा में
सुबह-सुबह से तुम न नहाते
रोज-रोज मां पापा के चरणों की
रज माथे पर बिल्कुल न धर पाते
नाश्ते, लंच, डिनर की धुन में
खुद को भूल कभी न पाते
सारा-सारा दिन एक नज़र देखे बिन
मुझको बोलो क्या तुम रह पाते
मेरे कपड़े सजा संवार के यूं पलंग पे
रोज करीने से धर पाते
हर कमरे हल्दी का दूध तुम
क्या सबको पहुंचा पाते
देर रात सब सो जाते जब
शरमाते सकुचाते से तुम कमरे में
क्या आ पाते
मां पापा के कटु वचनों को
नैन झुकाए रोज-रोज तुम क्या सुन पाते
अच्छा हुआ सजन जो
तुम न आए, मैं आई हूं
मैंने सर माथे पर रक्खा सबको
इस घर का दायित्व निभाया
तुम्हरे घर को स्वर्ग बनाया अपना
चलो परीशां तुम न होना
मैं जाती हूं दिनचर्या में
तुम आराम से नैना मूंदो, सो जाओ
बस छोटा सा ये खयाल था
जैसे आया, चला गया वो प्रियतम वैसे ही
छोड़ो चिंता ,छोड़ो ग़ुस्सा अब सो जाओ ,,,,,
(रंजना प्रकाश की प्रकाशित पुस्तकें एमजान, फ्लिपकार्ट तथा किंडल में उपलब्ध हैं।)
क्या बात है। सत्य को उजागर करती कविता।