
चाँद ‘शैरी’
नहीं तू इस क़दर धनवान बाबा
खरीदे जो मेरा ईमान बाबा
न तू बन इस कदर शैतान बाबा
कि हो सब बस्तियां वीरान बाबा
ये छोड़ अब मंदिरों-मस्जिद के झगड़े
अरे छेड़ एकता की तान बाबा
न बांट इनको ज़बानों-मजहबों में
सभी भारत की हैं संतान बाबा
ग़रीबों को मिले दो वक्त रोटी
कोई इतना तो रक्खे ध्यान बाबा
मुखौटे ही मुखौटे हर तरफ है
नजर आता नहीं इंसान बाबा
नई कुछ बात कह शेरों में ‘शेरी”
ग़ज़ल को दे नया उनवान बाबा
चाँद ‘शैरी’ (कोटा)
098290-98530
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बढ़िया ग़ज़ल, बधाई!