
दिल के ढेरों किस्से
-महेन्द्र नेह-
(कवि, गीतकार और समालोचक)
साधो, दिल के ढेरों किस्से।
जाने कब किस पर आ जाये, डर लगता है इससे ।।
इसके अन्दर घाव हजारों हाल बतायें किससे ।
वो ही हँसता नादानी पर व्यथा कही है जिससे ।।
इसके चक्कर में हम अक्सर दो पाटों में पिस्से ।
दुनिया मौज मनाती लेकिन दर्द हमारे हिस्से । ।
इसने कहा वही कर डाला इश्क किया हर शै से।
किन्तु हमेशा ठोकर खाई खाए अनगिन घिस्से । ।
समझाया है लाख इसे क्यों भिड़ जाता इस उससे ।
पर यह पूरा ढीठ तरेरे रहता आँखें मुझसे ।।
(महेन्द्र नेह की ‘हमें साँच ने मारा’ पद-संग्रह पुस्तक से साभार)
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वाह।दिल है कि मानता नहीं????????????????