यात्रा शिवाड़, घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की

यहां वर्ष में दो बार महाशिवरात्रि और सावन में बहुत धूमधाम से भारी मेला लगता है। यूं तो साल भर शिवभक्त दर्शन पूजा के लिए आते हैं, लेकिन शिवरात्रि तथा सावन के महीने में दर्शनार्थियों की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। मान्यता है कि इनके ना केवल दर्शन से विशेषफल प्राप्त होता है, बल्कि श्रद्धा के साथ नाम लेने मात्र से दुख संकट दूर हो जाते हैं। दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं।

 द्वादशवां ज्योतिर्लिंग 

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

भारत आध्यात्म और देवस्थानों की भूमि है, जैसा कि मैंने पहले भी जिक्र किया है भगवान शिव के प्रति मेरी विशेष आस्था, विश्वास और लगाव है। देवों के देव महादेव, आदियोगी और मेरे ईष्ट भी हैं सृष्टि के सृजनकर्ता शिव! शिव दर्शन के लिए तो मैं, कभी भी कहीं भी बार बार जाना चाहूंगी। मित्र परिवार ने जब यहां चलने के बारे में पूछा तो, हम तुरंत ही तैयार हो गए। हम पांच जन और पूरे बीस घंटे शिव के आश्रय स्थल में रहने के लिए समर्पित। हम आनन फानन में तैयार हो कर चल दिए। दिन में कोटा राजस्थान से १२: ३० बजे ट्रेन से मात्र तीन घंटे में ही ईसरदा स्टेशन पर उतर, ई रिक्शा से (“टिर्री” हमारी प्रिय बोली में) हम अपने गंतव्य “शिवाड़” पहुंच चुके थे।

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चहल पहल से दूर शिवभक्तों को यह छोटा सा स्थान अपनी ओर आकर्षित करता है, वहां का वातावरण बहुत ही शांत था। ना कोई प्रवेश शुल्क, ना पूजा पाठ की मारामारी, ना ही धक्का-मुक्की, स्वतः ही मन ध्यान पूजा में लग जाए। छोटा सा मुश्किल से दस हजार की आबादी का गांव, लेकिन मकान, दुकान, गाड़ियों से संपन्नता झलक रही थी। पर्वत की तलहटी में निर्मित शिवालय प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। इसके ऊपर पहाड़ी पर किला बना हुआ है वैसे तो राजस्थान में तो हर छोटे बड़े गांव/कस्बे जहां भी पहाड़ हैं, किले मिल ही जाएंगे। शिवाड़ में देवगिरी पर्वत पर बना किला लगभग 300 साल पुराना है। आज भी इसकी मजबूत प्राचीरें से शान खड़ी हैं। यूं तो किले/ महलों के रोचक शाही किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है, हर किले की अपनी एक अलग कहानी है। यह देख कर हैरानी होती है, कि इतनी ऊंचाई पर सुविधाओं के अभाव में निर्माण सामग्री किस तरह पहुंचती होगी।

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चाय पी, फ्रेश होकर हम दर्शनों के लिए निकले, ट्रस्ट में ही हमारे रहने की व्यवस्था थी, क्योंकि मित्र भी ट्रस्टी सदस्य हैं। मुश्किल से ५० कदम की दूरी पर ही मंदिर प्रांगण था। सर्व प्रथम हमने दर्शन किए। उस वक्त वहां सभी शिवलिंग पर जल चढ़ा रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया कि शिवलिंग पर जल लगातार चढ़ाते ही रहते हैं। भगवान शिव के अत्यधिक तेज/ क्रोध को शांत रखने का प्रयास किया जाता है, इसलिए श्रृद्धालु उन्हें जल चढ़ाते हैं। मंदिर में सहस्त्र घट पूरे होने की सीमा तक का एक #चिन्ह (राजा शिववीर चौहान के समय का) बना हुआ है, इस चिन्ह तक घड़ों से जल भरने पर #सहस्त्रघटों की संख्या पूर्ण हो जाती है। इस तरह सहस्त्र घट घुश्मेश्वर को मान्य है, तो वह जल यथावत भरा रहता है, और सुबह होते होते जलहरी का जलस्तर कम हो जाता है, अन्यथा पूजा मान्य नहीं होने पर, जल स्वतः ही दीवारों से बाहर निकाल दिया जाता है, ऐसा एक घटना का जिक्र लिखा हुआ है। गर्भगृह में बाहर से देखने पर शिवलिंग के दर्शन नहीं हो पाते हैं, इसलिए सामने ही मिरर (दर्पण) तिरछा कर के लगा हुआ है, जिसमें शिवलिंग के दर्शन हो जाते हैं। गर्भगृह के सामने ही नंदी विराजमान हैं। मंदिर परिसर में पीछे की ओर एक बहुत बड़ा सभागार, और आस पास कई छोटे छोटे मंदिर बने हुए हैं। मंदिर के बाहर चमत्कारी मनोकामना पूर्ति अखण्ड #धूनी प्रज्वलित रहती है। उसके बाद सीढ़ियों से नीचे उतर कर बाएं हाथ पर “किसना और जानकी” के दो पाषाण स्तंभ हैं, उनकी परिक्रमा करने पर ही दर्शन परिक्रमा पूर्ण मानी जाती है। मंदिर दर्शन का समय प्रातः 4:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक खुला रहता है। यहां वर्ष में दो बार महाशिवरात्रि और सावन में बहुत धूमधाम से भारी मेला लगता है। यूं तो साल भर शिवभक्त दर्शन पूजा के लिए आते हैं, लेकिन शिवरात्रि तथा सावन के महीने में दर्शनार्थियों की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। मान्यता है कि इनके ना केवल दर्शन से विशेषफल प्राप्त होता है, बल्कि श्रद्धा के साथ नाम लेने मात्र से दुख संकट दूर हो जाते हैं। दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं।

ट्रस्ट द्वारा संचालित भोजनालय, आवास वातानुकूलित/सामान्य दोनों तरह से, परिसर में ही उपलब्ध हैं। अभी तक आवास व्यवस्था निशुल्क है, लेकिन ए. सी. आवास पर मामूली शुल्क मेंटेनेंस के लिए लिया जाता है। जिससे किसी को कुछ भी परेशानी नहीं हुई। आवासीय कमरों के नाम भी बहुत सुंदर हैं यथा_ गौरी कुंज/ प्रयाग/काशी/शिवालय/ गंगोत्री/ केदारनाथ… आदि आदि। यहां ट्रस्ट द्वारा संचालित भोजन व्यवस्था भी अच्छी है, किसी तरह की कोई परेशानी नहीं, यहां के लोग संपन्न सीधे सच्चे हैं। कहते हैं शिवाड़ क्षेत्र व्यवसायिक दृष्टि से बहुत बड़ा केंद्र रहा है, यहां से देश की सभी मंडियों में सामान की सप्लाई होती है। यहां ट्रस्ट की स्थापना सन् १९८८ में देवस्थान विभाग से #रजिस्टर्ड है। शिवाड़ में श्री घुष्मेश्वर ज्योर्तिलिंग मंदिर #ट्रस्ट द्वारा सामाजिक #संस्थाओं व गांव के #सामूहिक सहयोग से #गौशाला निर्माण कार्य भी शुरू किया जा रहा है। इस मंदिर में देवगिरी पर्वत पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा विभिन्न देवी देवताओं की बड़ी बड़ी प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं। ट्रस्ट का वार्षिक बजट (रखरखाव) लगभग साठ लाख ₹ से एक करोड़ ₹ तक है, जो सब दानदाताओं, सामाजिक संस्थाओं और जन सहयोग से ही संभव होता है। मंदिर परिसर से बाहर निकल कर ५०० कदम की दूरी पर सुंदर सरोवर है। मंदिर में रात्रि में विशेष आकर्षक लाइटिंग की गई है। एक बात बहुत अच्छी लगी, यहां बहुत बड़ा एनर्जी #सोलर पैनल लगाया गया है। पहाड़ी पर घुश्मेश्वर उद्यान और शिखर पर हनुमान जी की विशाल प्रतिमा बनी हुई है। उससे भी ऊपर ॐ के अंकन की छटा दिखने लायक है। पहाड़ी पर रात की रोशनी अलग ही छटा बिखेरती है।
समाधि प्रिय शिव का सानिध्य योग बल से संभव मानकर, ज्योतिर्लिंग के मंदिरों में पाणिनी के अष्टांगिक योग पर आधारित शिल्प कला का प्रयोग मंदिर निर्माण में किया जाता था।

हर पांच सीढ़ियों के बाद विश्राम की व्यवस्था है। यह पांच पांच (सीढ़ियां) यम एवं नियम की, नंदी (आसन), पवनपुत्र (प्राणायाम), कछुआ (प्रत्याहार), गणेश (धारणा), माता पार्वती (ध्यान), भगवान शंकर (समाधिस्थ), उपरोक्त सभी इस मंदिर में विराजमान है तथा अष्टांगिक योग पर आधारित वास्तुकला की पुष्टि करते हैं। अनेक मूर्तियां, झरने, फूल, हरियाली अत्यंत सुंदर दृश्य दिखाई देता है। रात्रि में पहाड़ी पर रोशनी देखने में बहुत ही मनोहर दिखाई देती है।
लेकिन अब मंदिर के कपाट बंद हो गए थे और हम भी थक चुके थे। इसलिए रात्रि में ही दूसरे दिन के लिए अभिषेक करवाने के लिए वहां के आचार्य जी से बात हुई, हम थके हुए तो थे ही, सो विश्राम के लिए सभी अपने कमरों में चले गए। यहां पर एक सरकारी मान्यता प्राप्त #संस्कृत आवासीय विद्यालय भी है, जिसका खानपान की व्यवस्था ट्रस्ट ही देखता है। दूसरे दिन प्रातः सात बजे अभिषेक के लिए आचार्य जी अपने दो शिष्यों के साथ तैयार थे, ये शिष्य पूजा में सहायक थे और वे प्रैक्टिकल भी सीख रहे थे। अभिषेक के बाद बाहर निकले ही थे तो, #ट्रस्टी अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी तथा #स्थाई संरक्षक ठा. राजेश्वर सिंह जी से मुलाकात हो गई, उन्हीं के साथ चाय पी तथा बातों का सिलसिला चल पड़ा। कहते हैं एक संत के कहने पर किले का निर्माण देवगिरी पर्वत की तलहटी से शुरू हुआ। यहां पहले एक विशाल कुआं बनवाया गया, जो आज भी सदानीरा है, साथ ही मंदिर, बुर्ज के चारों ओर गहरी खाई भी बनाई गई, ताकि शत्रु किले के अंदर प्रवेश नहीं कर सके। यहां परिसर में चार दरवाजों को पार कर ही अंदर परिसर में पहुंचा जा सकता था। बाहर मुख्य दरवाजे पर भी भालेनुमा कीलें लगी हुई थीं। यह किला #सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। किले की प्रत्येक दीवार की #चौड़ाई बारह फुट है। आमतौर पर किले पर कंगूरे बनाए जाते हैं जो कि सजावट के लिए होते हैं, लेकिन इसकी पूरी दीवार समतल दिखाई देती है, इसमें ऐसी व्यवस्था थी कि शत्रु यदि किसी तरह अंदर प्रवेश कर भी जाए तो बाहर नहीं निकल सकता था, अंदर भूल भुलैया में फंस कर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं सूझता था और अंततः पकड़ा जाता या मारा जाता। इस तरह से यह किला अभी तक अजय/अभेद्य माना जाता है। इसी परिसर में बारूदखाना भी बनाया गया। सभी बुर्जों पर तोपें रखी गई थीं, जिसमें एक तोप का नाम भवानी था।। बीस पच्चीस किलोमीटर दूरी की क्षमता वाली तोप भी है, बताते हैं जिससे टोंक में छः लोगों को उड़ा दिया गया था। यह सब जैसा कि शिवाड़ के ट्रस्टी अध्यक्ष प्रेमप्रकाश जी शर्मा तथा किले के owner, ट्रस्ट के स्थाई संरक्षक ठा. राजेश्वर सिंह जी ने बातचीत के दौरान हमें बताया। दुश्मनों के लिए हमेशा #अभेद्य/अजेय ही रहा यह किला। इस किले के अंदर जेल भी है। किले के अंदर ही चौदह वाटर स्टोरेज, बावड़ियां हैं। और भी बहुत कुछ, बातें इतनी रोचक थीं कि उठने का मन ही नहीं हो रहा था, मैंने रिकॉर्डिंग का आग्रह किया तो ठा. राजेश्वर जी ने हमें फोर्ट दिखाने तथा चाय के लिए आमंत्रित किया। लेकिन समय हमें फोर्ट देखने जाने की इजाजत नहीं दे रहा था, हमारी ट्रेन का समय हो रहा था और अभी नाश्ता भी करना था। ट्रस्ट अध्यक्ष जी ने हमारा साफा, शॉल ओढ़ाकर, प्रतीक चिन्ह भेंट कर स्वागत किया और अंत में उनसे क्षमा मांग, अगली बार आने का वादा कर वापिस अपने रूटीन, घर लौटने के लिए चल पड़े। __ क्रमशः
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

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Sanjeev
Sanjeev
2 years ago

जीवंत यात्रा वृतांत, आपने तो घर बैठे ही आदिनाथ शिव के दर्शन करा दिए, बहुत बहुत साधुवाद