निगाहों में चमक आई है देखो। कोई क़ातिल इरादा* जागता है।।

books of shakoor anwar

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

हुई हलचल सवेरा जागता है।
जिधर देखो उजाला जागता है।।
*
ॲंधेरे मुॅंह* परिंदे* जागते हैं।
परिंदों से ज़माना जागता है।।
*
निगाहों में चमक आई है देखो।
कोई क़ातिल इरादा* जागता है।।
*
ये लहरें चाॅंद को छूने लगी हैं।
ॲंधेरी शब* में दरिया जागता है।।
*
सितारे चाॅंद जुगनू और पतंगे।
खुले ऑंगन में क्या क्या जागता है।।
*
सभी संवेदनाऍं मर रही हैं।
मगर अंदर का बच्चा जागता है।।
*
ॲंधेरे में गुज़रती रेलगाड़ी।
अचानक इक उजाला जागता है।।
*
नहीं होगी ग़ज़ल अब ख़त्म “अनवर”।
उमीदों का सितारा जागता है।।
*

ॲंधेरे मुॅंह*सुबह, सवेरे, तड़के,
परिंदे*पक्षी
क़ातिल इरादा*जान लेने वाला इरादा
शब*रात

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments