ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
उड़ानों के भॅंवर में थे।
परिंदे जो सफ़र में थे।।
*
ज़माने की नज़र में थे।।
हमीं रक़्से शरर* में थे।
*
यही था दिल का सरमाया।
जो मोती चश्मे तर* में थे।।
*
अचानक पड़ गया शब खूॅं*।
अभी हम रहगुज़र में थे।।
*
फ़साने थे कई पिन्हाँ*।
कई क़िस्से खंडर में थे।।
*
किताबे दिल हमीं से थी।
हमीं बाबे दिगर* में थे।।
*
ये कैसी शहरदारी थी।
सब अपने अपने घर में थे।।
*
इसे कैसे ख़िज़ाँ समझूॅं।
अभी पत्ते शजर में थे।।
*
कहाॅं थे नाख़ुदा* “अनवर”।
सफ़ीने जब भॅंवर में थे।।
*
रक्से शरर*बिजली का नृत्य
चश्मे तर*भीगी हुई ऑंख
शब खूँ*रात के वक्त पड़ने वाला डाका
पिन्हाॅं* छुपे हुए
बाबे दिगर*अन्य अध्याय
शहर दारी*आपसी संबंध
नाख़ुदा* मल्लाह
शकूर अनवर
क्या बात है।????????