तुम्हारी चुप्पी

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-रामस्वरूप दीक्षित-

ram swaroop dixit
रामस्वरूप दीक्षित

तुम्हारा इस तरह
बोलते बोलते हो जाना
यकायक चुप

और पता नहीं
कहाँ देखते हुए
क्या सोचने लगना
नाखूनों से कुरेदने लगना जमीन
या उंगलियों से बनाने लगना
पता नहीं किसका चित्र

या देखने लगना एकटक
दीवार पर टँगे
प्रेमबद्ध जोड़े का फोटो
जो हो चुका है धूल से
कुछ ज्यादा ही धूसरित

तुम आँखों से हटाने लगती हो उसकी धूल
और उतरने लगती हो उसमें
धीरे धीरे

प्रेम में तुम्हारा इस तरह से उतरना
और डूब जाना गहरे चुपचाप

मैं देखता हूँ
तुम्हारी आँखों से
खुद को खड़ा किनारे

तुम्हारी चुप्पी की भाषा
उसका भावार्थ
उसका गहरा अभिप्राय समझने
जाना होता है
व्याकरण की सीमाओं से परे

तुम्हारी चुप्पी
लगातार रचती रहती है
ऐसी अद्भुत प्रेम कविताएँ

जिन्हें पढ़ने के लिए चाहिए
जो जरूरी इत्मीनान
वह बहुत बार नहीं होता
हमारे पास

और इस तरह
अपठित ही रही आतीं
न जाने
कितनी सारी प्रेम कविताएँ
रामस्वरूप दीक्षित

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विवेक मिश्र
विवेक मिश्र
2 years ago

न जाने कितनी अपठित ही रह जाती प्रेम कविताएं

बहुत मूल्यवान कविता