जीवन की भट्टी को जिलाये रखने के लिए वह दौड़ता है

अर्थ के पीछे भागती इस दुनिया में श्रम के लिए वह मान सम्मान कहां है ...वह तो श्रम के सहारे बस चलता है या चल सकता है ...जो श्रम नहीं करता उसका कब्जा पूंजी पर है ....इस सबके बीच जीवन संसार में मजदूर दौड़ता रहता है ....उसके पास काम होना चाहिए पर होता नहीं और वह काम के अभाव में दर - दर भटकता रहता है ...जबकि जीवन की चुनौतियां उसके सामने मुंह बाये खड़ी रहती हैं ...वह सबका सामना करता है।

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महिला श्रमिकों की फाइल फोटो

-प्रो.विवेक कुमार मिश्र-

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

आज एक मई है । मजदूर दिवस । पेट की आग बुझाने में जी तोड़ मेहनत करता आदमी का दिन …जीवन के लिए संघर्ष करता दिन …सामने ही जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं और एक मजदूर के लिए संघर्ष भरा दिन …हर दिन एक नये संघर्ष के लिए निकल पड़ता है एक उम्मीद से भरे चौराहे पर जहां उसके जैसे ही मेहनतकश आदमी होते हैं हर आते – जाते आदमी को इस उम्मीद से देखते हैं कि …जो आ रहा है उनके लिए कोई न कोई काम लेकर आया है और जब काम मिल जाता तो खुशी – खुशी मजदूर आदमी चल देता काम पर …और इस तरह दौड़ पड़ती है जिन्दगी की गाड़ी । जीवन की गाड़ी को दौड़ाने के लिए ही इस झुलसाने वाली गरमी में वह दौड़ता है काम के लिए कोई भी समय उसके लिए आराम का नहीं होता …हर समय उसके लिए काम पर खटने का होता …ऐसे में विपरीत मौसम उसके लिए दुश्वारियां ही लाता …कई बार मौसम की मार उसके कार्य में बांधा बन जाती । जाहिर है कि जब काम नहीं मिलेगा तो मजदूर के घर में चुल्हे कैसे जलेंगे …यह चुल्हा का जलना ही तो जीवन है …इसी जीवन की भठ्ठी को जिलाये रखने के लिए वह दौड़ता रहता है । भरसक अपनी जान भर मेहनत करता है। उसके मेहनत का रंग इकहरा नहीं है …वह एक ही काम नहीं करता …कई तरह से जीवन की गाड़ी को दौड़ाता रहता है। कभी खेत खलिहान में काम करता तो कभी मण्डी में तो कभी किसी मिल में या कम्पनी में और जब कहीं काम नहीं मिलता तो लेबर चौराहा पर आकर खड़ा हो जाता ….जीवन की सांस के लिए यहां खड़ा होना ही बहुत हो जाता है । जीवन की गाड़ी के लिए किसी को भी क्या चाहिए …दो जून की रोटी – दाल और दो जोड़ी कपड़ा । इतना ही तो चाहिए एक आदमी के लिए पर वह भी नहीं मिलता एक अनिश्चितता बनी रहती है कि काम मिलेगा की नहीं और यदि काम मिल जायें तो सही दाम मिलेगा की नहीं …उसे बस आज के बारे में पता होता है । कल क्या काम मिलेगा ? कहां मिलेगा ? कैसा मालिक होगा ? कुछ भी निश्चित नहीं एक अनिश्चितता के भंवर में उम्मीद को लिए – लिए चलता है मजदूर कि कोई न कोई काम मिलेगा । उसकी तमाम उम्मीदें सूरज के उगने और आसमान में चढ़ने के साथ खत्म होने लगती हैं । कहीं आधी मजदूरी पर काम न करना पड़ा या वो भी न मिले । इस तरह उपर – नीचे देखता मजदूर जिन्दगी के बीहड़ में जीने का एक आभासी रिश्ता सीख जाता । काम मिले तो बहुत खुश न मिले तो किस्मत को दोष देता चल देता …किसी से शिकायत भी नहीं करता । करें कैसे ? किससे करे ? कौन है सुनने वाला ? …वह तो यूं ही घूम रहा है इधर से उधर अपने हुनर को लिए – लिए । जीवन के बीहड़ में दौड़ता इंसान कभी खाली नहीं होता लेकिन मजदूर खाली और मजबूर होता है …उसके लिए तो मजदूर दिवस पर भी कुछ नहीं होता । वह तो संसार को बराबर अपने संघर्ष में देखता है । संघर्ष भी इस बात का है कि जीवन में रोटी – दाल चलता रहे …इसके लिए वह जीवन की जद्दोजहद में दौड़ता रहा …उसके लिए कोई काम मुश्किल नहीं है पर काम है कि उसके पास आता नहीं …मजदूर दौड़ता भागता अपनी बारी का इंतजार करता रहता । लेबर चौराहा इस बात का साक्षी है कि …अंत में थके व उदास मन के साथ लौट रहा है । कैसे कहे कि काम नहीं मिला । काम की खोज में इधर से उधर भटकता रहा ….पर उम्मीद नहीं छोड़ी । ठीक है आज काम नहीं मिला तो कल मिलेगा …इस उम्मीद को लेकर वह चल देता । हर दिन सूरज के उगने के साथ ही जीवन के संघर्ष में मजदूर चल देता है …उसके हर कदम में रोटी की आहट होती है …जीवन की आग और आँख का पानी लिए चलता रहता है जीवन धन के लिए एक मजदूर । एक आदमी । एक उम्मीद । मजदूर है तो दुनिया को दुरुस्त करने के लिए आदमी है ।
अर्थ के पीछे भागती इस दुनिया में श्रम के लिए वह मान सम्मान कहां है …वह तो श्रम के सहारे बस चलता है या चल सकता है …जो श्रम नहीं करता उसका कब्जा पूंजी पर है ….इस सबके बीच जीवन संसार में मजदूर दौड़ता रहता है ….उसके पास काम होना चाहिए पर होता नहीं और वह काम के अभाव में दर – दर भटकता रहता है …जबकि जीवन की चुनौतियां उसके सामने मुंह बाये खड़ी रहती हैं …वह सबका सामना करता है। इस आदमी के उपर ही टिका है संसार भर की कार्यशक्तियों का संसार । बड़ी – बड़ी अट्टालिकाएं और राजप्रसाद से लेकर हर आदमी के सपनों का घर वह तैयार करता है । इससे इतर भी खेत – खलिहान से लेकर गांव घर तक हर जगह उसकी जरूरत है । उसकी दुनिया हर जगह दौड़ती – भागती काम के लिए जतन करते देखी जाती है । वह काम भी करता है …फिर भी दुनिया के हालात में चाहे जितना परिवर्तन आयें पर एक मजदूर आदमी के जीवन में परिवर्तन कम ही देखने को मिलता है । ऐसा नहीं है कि मजदूर सपने नहीं देखता या घर नहीं बनाता या बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहता यह सब करता है । मजदूरों की दुनिया में जिसे सही जगह मिल जाती वह तो अपने और अपने परिवार को सम्भाल लेता लेकिन जो रोज काम की खोज में भटकता है उसके लिए यह दुनिया बेरहम हो जाती है । वह तो ठंड …गर्मी …बरसात हर मौसम में प्रकृति की मार सहता हुआ ही कार्य के लिए दौड़ लगाता है । कार्य मिल जायें तो ठीक नहीं तो भाग्य के नाम पर सह लेता है । जीवन के जद्दोजहद में मजदूर दौड़ता हांफता रहता है । इस आदमी के सपने कब पूरे होंगे ? यह उम्मीद तो मनुष्यता के खाते से करनी ही चाहिए ।
मेहनतकश आदमी और दिमागी आदमी के बीच जो फासला है वह एक मेहनतकश को चालीस से पचास की उम्र में ही जर्जर बूढ़ा और बीमार दिखाने लगता है ….हर रोज लेबर चौराहे पर मेहनतकश की भीड़ खड़ी रहती है जिन्हें काम मिल जाता उनके सांझ के चुल्हे जलने का इंतजाम हो जाता और जो रह जाते लौट आते खाली हाथ …उदास आखों से संसार को देखते हुए । इस झुलसाने वाली गरमी में हाड़तोड़ मेहनत करते आदमी दिखते हैं अपने संसार में थोड़ी सी खुशी और इफरात गरीबी लिए हर सड़क पर मिलते हैं आदमी / मेहनतकश और मजदूर …..इनकी जिन्दगी मेें जब परिवर्तन आयेेगा तो सही मायनेे मेेंं आदमी अपने कदमों के साथ कदमताल करते हुए धरती पर अपने सपने को बो पायेगा । यह धरती श्रम के सहारे सजती है …बस श्रम करते आदमी के जीवन में भी बेलबूटे जिन्दगी की जरूरतों खासकर जरूरी जरूरतें पूरी हो जायें तो और क्या चाहिए । एक स्वस्थ्य सामाजिक तंत्र और व्यवस्था की संकल्पना में एक ही बात हो सकती है कि उसके यहां सभी के सपने सुरक्षित हैं । जीवन जीने की सामान्य जरूरतें सभी के पास हों …उम्मीद के कदमों से दौड़ता मजदूर जीवन की न केवल जरूरत हासिल करें वल्कि इससे बहुत आगे बढ़कर – अपने सपनों और उम्मीदों में रंग भी भरता है । इस मजदूर दिवस पर आदमी के भीतर सपनों की एक और उम्मीद जगे और फलीभूत हो यह इच्छा तो की जा सकती है । मजदूर दिवस पर एक मजदूर अपने काम की आस लिए बैठा है …काम मिल जायें तो दुनिया की सुंदरता और सेहत दोनों बढ़ती है । एक बेहतर संसार की उम्मीद में बढ़ता कदम ….।
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-प्रो.विवेक कुमार मिश्र
आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002

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श्रीराम पाण्डेय कोटा
श्रीराम पाण्डेय कोटा
2 years ago

जीवन की भट्टी को जिलाए रखने का कथन ,२१ वी सदी में भी सत्य की कसौटी पर खरा है