
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
एक दिल के हज़ार अफ़साने।
कोई क्या समझे कोई क्या जाने।।
*
जबसे आबाद हैं ये मैख़ाने*।
हम न काबे गये न बुतख़ाने*।।
*
उनको देखूँ तो दिल धड़कता है।
दिल की सोचूँ तो वो बुरा माने।।
*
ये मुलाक़ात भी ग़नीमत है।
फिर मिलेंगे कहाँ ख़ुदा जाने।।
*
हॅंसते फूलों पे वो ख़िज़ाँ* आई।
खिलते चेहरे लगे हैं मुरझाने।।
*
सबके हाथों में ख़ून के छींटे।
“सबने पहने हुए हैं दस्ताने”।।
*
वज्द* में आ गई है फिर महफ़िल।
रक़्स* में आ गये हैं दीवाने।।
₹
मरहले* ज़िंदगी के हैं “अनवर”।
दश्त* सहरा सराब* वीराने।। *
मैख़ाने*शराब ख़ाने
बुतख़ाने*मन्दिर
ख़िजाॅं*पतझड़
वज्द* झूमना हाल आना
रक्स*नृत्य
मरहले*पड़ाव
दश्त*जंगल
सराब*मरीचिका
शकूर अनवर
9460851271

















