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– डॉ . विवेक कुमार मिश्र-
(सह आचार्य हिंदी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
हरियाली खेत खलिहान और जमीन से उपर उठते पहाड़ मन मोह लेते हैं । सहज रूप से इनकी ओर मन चला जाता है । जब आप यात्रा में होते हैं और संयोग से खिड़की वाली सीट मिल जाए और मन की आंख से इस संसार को आंखों में बसाते चलें तो सहज रूप से आप जीवन को कहीं ज्यादा जीते और सीखते हैं। यह प्रकृति जीवन के प्रति उत्साह, चाह और ज्ञान से एक साथ जोड़ने का काम करती है। ट्रेन से बहुत दूर

डॉ. विवेक कुमार मिश्र

का संसार आंखों के आगे दिखने लगता है और लगता है कि आप लगातार आगे बढ़ते हुए अपनी प्रकृति को अपने जीवन को और जीवन तत्व को पीछे छोड़ते जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ यह भी बात आती है कि लगातार एक नये संसार की ओर बढ़ते जा रहे हैं। संसार आंखों के आगे बहुत तेज गति से चलता चला जाता है और इस क्रम में देश की मिट्टी, पानी और वनस्पतियां, नदी, नाले, पहाड़ सब ध्यान खींचते रहते हैं। अपनी ओर बुलाते से लगते हैं।

हर मौसम और समय का अपना ही रूप रंग 

देश के किसी छोर पर चले जाइए वहां की मिट्टी, पानी, पेड़, पौधे और वनस्पतियां सहज ही खींच लेती हैं । हर मौसम और समय का अपना ही रूप रंग होता और अपने ढ़ंग से संसार आप से संवाद करने लगता है। इस समय सावन की हरियाली छाई हुई है। सब कुछ हरा भरा दिखता है। बस देखने का मन और देखने का जरिया और सामने वह संसार हो जिसे आप देख रहे हैं। यह देखना भी संसार की सत्ता का प्रमाण है। संसार है और आप देख रहे हैं  इस तरह देखें जाने में संसार की सत्ता पूर्ण होती है। जब से यह पृथ्वी है तभी से यह दृश्यता और सत्ता तथा संसार को देखा और समझा जाता रहा है। यहां अलग अलग समय में अलग अलग लोग आते रहे हैं और सब अपने हिसाब से संसार को देखते और समझते हैं। संसार को देखना जानना और उसके सौन्दर्य पर मुग्ध होना मनुष्य होने की एक पहचान है।

महसूस करना ही जीवन की सही मायने में सार्थकता

इस संसार को समझना, जीना और जो सुंदर है उसे महसूस करना ही जीवन की सही मायने में सार्थकता है। हरी भरी पहाड़ियां धरती का श्रृंगार रचती हैं। यहां से जीवन जीने के लिए औषधि, वनस्पतियां और सूखी लकड़ी जलावन के रूप में मिलती हैं। गर्मियों में जहां ये सूखे रूखे दिखते हैं वहीं इन दिनों में हरियाली से ऐसा श्रृंगार हो जाता है कि इसके अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता। जहां इनकी तलहटी में जो गांव बसे होते हैं वे अपने छोटे छोटे घर से जीवन के इस विशाल ढ़ांचे को न केवल देखते हैं बल्कि यह इनके जीवन में एक विशालता का भाव लाता है और स्थाई रूप से अपनी जगह पर बने रहने का पाठ पढ़ाता रहता है। यहां अडिग होने का पाठ मिलता है। पहाड़ है। हरियाली है। खेत खलिहान है। जीवन की चट्टान पर जिंदगी को जीते लोग हैं तो स्वाभाविक है कि जो प्रकृति इन्हें रचती है वह इन्हें बहुत मजबूत बनाती है। यहां से जब हम जीवन को रचते पलते और बढ़ते देखते हैं तो कुछ बातें समझ के रूप में सामने आती हैं जिसे स्वीकार करते हुए चलने में ही सभ्यता की गाड़ी सही ढ़ंग से चलती है ….

नदी किनारे का मनोरम दृश्य

– अपनी प्रकृति और अपने आसपास के संसार से जीवंत संवाद रखें । जिस प्रकृति ने आप को रचा है बनाया है उसे न भूलें और यह बराबर ध्यान में रखें कि आप उसके लिए क्या कर सकते हैं । आप किस तरह अपनी प्रकृति को संरक्षित करते हैं। कुछ बहुत बड़ा करने की जगह अपने छोटे छोटे प्रयास से अपने आसपास के संसार और प्रकृति के लिए यदि कुछ भी करते हैं तो आप निर्माण कर रहे हैं और इस रूप में आप निर्माता हैं ।
– प्रकृति से जो कुछ दाय में मिला है उसे सहज रूप से स्वीकार करें। यह आपके लिए एक उपहार है कि आपको ऐसी सुंदर प्रकृति मिली है । इसे बनाएं रखने और इसको बचाने के लिए यदि आप कुछ भी करते हैं तो वहीं बात बड़ी हो जाती है। यह आपकी उपलब्धि है और इसे इसी रूप में देखने की कोशिश करें।
– अपने आसपास जो प्राकृतिक स्थितियां हैं उसे बचाएं रखने में अपना योगदान करें।
-यह प्राकृतिक दशा आपके जीवन के लिए , समाज के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए काम की है इसलिए लगातार इसके संरक्षण के बारे में सोचना और वास्तविक रूप से कुछ करते हुए चलना ही सही मायने में मनुष्य होना है।
– अपनी उपस्थिति अपने समय समाज में दर्ज कराते रहें । ये न सोचें कि हमारा क्या हम तो यहां रहते नहीं। जो हैं वो ही जाने तो इस तरह आप बड़ी ग़लती कर रहे हैं । आप ज्ञान समृद्ध और समर्थ हैं तो समाज के लिए , प्रकृति के लिए अपने आसपास के लिए आपकी बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि आप सामाजिक गति के कार्य में अपना योगदान दें।
– हमेशा अपनी उपस्थिति को सार्थक करते चलें । यह सब संभव तब होता है जब हम सोचें हुए संकल्प को पूरा करने की कोशिश करते हैं।
– शुरुआत करें। पहले करें । यह न सोचें कि कोई चलेगा तो मैं भी चल पड़ुगा। प्रतीक्षा न करें । अपने आप को सामने रखना भी सीखें। यदि साहस के साथ अपनी प्रकृति के साथ चलते हैं तो कोई ताकत नहीं है जो आपको सफल होने से रोक दें।
– अपने साथ आने वाली भावी पीढ़ी के लिए जगह बनाएं । किसी भी क्षेत्र में कार्य क्यों न कर रहे हों नये के लिए जगह देना मनुष्य होने की सही पहचान को गहरे रंग से रेखांकित करता है।
– अपने आप को अपने आसपास की प्रकृति से रचते गढ़ते जीवन से संवाद करते चलें । यह जीवन मूल्यवान है इसे सहेज कर हम प्रकृति की और खुद की रक्षा करते हैं।

संसार में बहुत कुछ आता रहता है और आता रहेगा
जब संसार के लिए अपने घेरे से बाहर निकल कर चलते हैं और कुछ बड़ा करना चाहते हैं तो नफा नुकसान के बारे में नहीं सोचना चाहिए । जो हैं और जो नहीं है वह सब इस प्रकृति की देन है और उसके विधान में जो अच्छा होगा वह वहीं करेगा। संसार में बहुत कुछ आता रहता है। और आता रहेगा। प्रकृति के बीच पले बढ़े लोगों के बीच छोटी मोटी बातें आती ही नहीं और न ही किसी बात से ये घबराते हैं। साहस का रंग इन पर हरियाली की तरह ही चढ़ जाता। कहीं हों कैसे भी हालात हों सहन करने की शक्ति और अपनी पहचान के साथ बने रहने की क्षमता इनमें स्वयं ही आ जाती है। हार जाना, यूं ही पड़ जाना इन्हें नहीं आता। ये मन और शरीर से मजबूत स्वस्थ होते हैं साथ ही सरसता और सहजता इन्हें उपहार में प्रकृति देती है। कितना बड़ा कार्य क्यों न हो यह इनके लिए सहज ही हो जाता है। संसार को आंखों के आगे बनते रचते और नये नये रूप में रूप धारण करते ये देखते हैं तो इन्हें अचानक कोई परिवर्तन यह नहीं कहता कि यह क्या हो गया। यह आश्चर्य का विषय नहीं होता। यह बस ऐसे ही आता कि संसार का एक घटना क्रम है और वह हो गया। इनकी प्रतिक्रिया भी इसी तरह की होती है और यह इन्हें अपनी प्रकृति से मिलती है। संघर्ष की क्षमता सहज ही विकसित हो जाती है। यहां किसी भी तरह की प्रतिकूलता जीवन पर भारी नहीं पड़ती है। जीवन जीने का जज्बा यह प्रकृति इन्हें सिखाती है। यहां यह बात साफ हो जाती है कि आप किस संसार और किस प्रकृति से आते हैं वहीं आपके भीतर एक जज्बा और जोश भर देती है। यह सब संभव होता है जब आप अपने संसार से , अपनी प्रकृति से संवाद करते हैं और अपने संसार को बेहतर बनाने के लिए संवाद करते हैं तो जीवन के प्रति एक सार्थक दृष्टि विकसित होती है।

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D K Sharma
D K Sharma
2 years ago

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां।

तन मन से यदि स्वस्थ रहना है तो रोजाना कुछ समय प्रकृति की गोद में बिताइए।

D K Sharma
D K Sharma
2 years ago

प्रकृति का आनंद लीजिए और उसे स्वच्छ और हरा भरा रखने के लिए अपना योगदान दीजिए। प्लास्टिक और पॉलीथिन का कचरा कभी भी नाले, नहर या नदी में मत फेंकिए।

विवेक कुमार मिश्र
विवेक कुमार मिश्र
2 years ago

जी । प्रकृति रचती है।