
ग़ज़ल
शकूर अनवर
जिस डगर में कोई मुश्किल या कोई बाधा नहीं।
ऐसा सीधा रास्ता अपने लिए अच्छा नहीं।।
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जिसने ये दुनिया बनाई वो हमें दिखता नहीं।
आसमाॅं दिखता है लेकिन आसमाॅं होता नहीं।।
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ज़िंदगी की भीड़ में यूॅं खो गया मेरा वजूद।
जैसे मेरा ज़िंदगी से कोई भी रिश्ता नहीं।।
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सब को ही दो वक़्त की रोटी मिले इस देश में।
ऐसा होना चाहिए ऐसा मगर होता नहीं।।
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उसको ही क़ातिल बना डाला ये कैसा न्याय है।
जिसके दामन पर किसी के ख़ून का धब्बा नहीं।।
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खा गये कुछ लोग सूरज को निगल कर खा गये।
अब हमारे वास्ते इक धूप का टुकड़ा नहीं।।
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हमने आख़िर इन हवाओं की सियासत देखली।
जो दीया रोशन हुआ था वो भी अब जलता नहीं।।
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ऐसा लगता है कि ये दिन भी बदल ही जायेंगे।
आख़िरी तारा अभी उम्मीद का डूबा नहीं।।
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हम भी तुम भी छोड़ जायेंगे ये दुनिया एक दिन।
कोई भी “अनवर” हमेशा तो यहाँ रहता नहीं।।
शकूर अनवर
वजूद*अस्तित्व
9460851271

















