– विवेक कुमार मिश्र-

बच्चों के चित्र और रंग
बच्चों की कल्पना में रंग
यथार्थ से उपर भी चलें जाते
इतना रंग भर जाते कि
जीवन यहां से खिलता हुआ
एकदम से सामने आ जाता
जैसे कि बच्चे उछलते कूदते आते हैं
जब तब बच्चों के चित्र देखता हूं
तो पेड़ पहाड़ नदियां
और सूरज दादा जरूर दिखते हैं
बच्चों के चित्र में प्रकृति
सीधे – सीधे हमारे घर संसार की तरह आती है
चित्र खींच ही लेते हैं ध्यान
जब चिर परिचित संसार की तरह
सामने होते तो कुछ और देखने को
बाकी नहीं रह जाता
ज्यादातर चित्रों में पेड़ अपनी जगह घेरे रहते हैं
और पेड़ के साथ हमारा वह सारा संसार भी होता
जो घर और पगदंडी की तरह ही हमारे आसपास होता
बच्चों ने एक चित्र बनाया जिसमें पेड़ है
विशाल पेड़
जैसा कि पेड़ को होना चाहिए
बड़ी बड़ी शाख पर फूल और पत्तियों के गुच्छे
लाल लाल रंग से भरे हैं
कुछ पत्ते धब्बे की तरह नीचे गिरे हैं
इस बीच रंगों की भी एक दुनिया है
जिसमें लाल पीला और धूसर रंग है
काली पट्टिका के बीच यह सारा संसार घिरा है
यह रंग जीवन का यथार्थ भी रचता है
और कहीं न कहीं
पृथ्वी के प्रदूषण को भी दिखाता चलता है
बच्चों की चिंता में वह सब है
जो इस समय दुनिया की चिंता में है
पर यही यह सच भी है कि
बच्चों के यहां केवल चिंता नहीं है
उनके यहां उल्लास का लाल रंग भी है
जो विविध छवियों के साथ उभरते हुए
दुनिया को भविष्य कथा में रचती रहती है ।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)
बालपन होता ही है उर्जा व उत्साह से भरपूर।दीन दुनियां से बेखबर।.
सच्चे मन से बच्चे चलते रहते हैं। धीरे धीरे दुनियादारी का आवरण चढ़ने लगता है।
बहुत बहुत आभार मैडम