
-अमित जैन-
कोटा। कोचिंग सिटी में जहां कोरोना के बाद देश भर के विद्यार्थियों की रिकॉर्ड आवक से जहां कोटा की इकोनॉमी को फिर पंख लगे हैं वहीं कोचिंग विद्यार्थियों के आत्महत्या करने के मामलों पर रोक नहीं लग रही है। कल एक और कोचिंग छात्र ने आत्महत्या कर ली। कोचिंग छात्रों के आत्महत्या के मामले कोटा के लिए अब नए नहीं रहे क्योंकि आए दिन इस तरह की घटनाएं होती हैं और अब तो मीडिया में भी यह दर्दनाक घटना महज एक सामान्य आत्महत्या के समाचार तक सीमित हो गई है।

दु:खद पहलू बहुत कम समय के अंतराल में इस प्रकार की घटनाओं का होना और होते ही जाना है जो कहीं न कहीं किसी बड़ी चूक की और संकेत कर रहा है। हालांकि कई बार इस विषय पर मंथन हुये, सेमिनार हुये, काउंसलिंग सत्र हुये, यहां तक कि कोचिंग छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए दशहरा मैदान में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम तक आयोजित किए गए। लेकिन ये सभी प्रयास नाकाफी रहे हैं।
लेकिन जिस कारण पर मंथन नहीं हुआ या उसे नजर अंदाज कर दिया गया, वही घातक हो रहा है। यह कारण है शिक्षा का बाजारीकरण। विद्यार्थी, बच्चे के माता पाता, कोचिंग संस्थान, शहर, शहरवासी सभी न जाने किस सम्मोहन में जी रहे हैं? अब तो नवीं कक्षा से ही जिंदगी में चर्चा का विषय मेङिकल या इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा हो जाता है। हमारे समय में तो साइंस मैथ्स के लिये 10वीं क्लास के अंको की मैरिट बनती थी। कोचिंग में एङमीशन के लिये भी स्क्रीनिंग टैस्ट लिया जाना कॉमन था !
अब वही मापदंङ पुन: स्थापित करने का समय आ चुका है क्योंकि हर किसी के लिये ये प्रवेश परीक्षायें उपयुक्त नहीं हैं। इसे सहजता से समझना ही होगा। दिन की तीन या चार क्लासों के बोझ में दबे छात्र की मौन चीत्कार कौन सुन सकता है? पूरे वर्ष पर्यंत थका देने वाला शैक्षणिक कार्यक्रम, साधारण छात्र- छात्राओं को निराशा में ङुबो देने के लिये पर्याप्त है। इसके अतिरिक्त खेलकूद, मनोंरजन के सामाजिक प्रचलित तानेबाने सब नष्ट हो चुके हैं। जबकि प्रत्येक तीन महीने के बाद तीन-चार दिन की छुट्टियाँ बच्चों को देनी आवश्यक होनी चाहिए। या कम से कम सेकण्ड सेटरडे को तो अवकाश देना ही चाहिए। ताकि वे रिविजन कर सकें, रिलेक्स कर सके।
जो भी हो स्थितियाँ बहुत भयानक होती जा रही हैं। जिसका बच्चा आत्महत्या करता है, वही परिवार, बाजारवाद, झूठी अपेक्षाओं के चक्रव्यूह को समझता है लेकिन तब तक देर बहुत हो चुकी होती है। उसके घर का चिराग बुझ चुका होता है।
आशा है कि एक सामान्य छात्र की आवाज प्रशासन तक पहुंचेगी और कोटा भी इस आवाज को सुनेगा।
सरकारी एवं निजी विद्यालयों, कालेजों और विश्वविद्यालयों के शिक्षण के स्तर में सुधार कीमती आवश्यकता है। यदि इन संस्थानों में विद्यार्थियों को गुणात्मक शिक्षा मिले तो युवकों को प्रेत की तरह उपजे कोचिंग संस्थानों में जाने की जरूरत ही नहीं पड़े। हमारी शिक्षा प्रणाली,शिक्षक संगठनों, राजनीतिक नियुक्तियों तथा दखलंदाजी की भेंट चढ़ने से शिक्षा का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। इसका फायदा कोचिंग इंस्टीट्यूट्स उठा रहे हैं और इनकी आमदनी दिन रात चौगुनी हो रही है। आज दिन कोचिंग छात्रों की आत्म हत्या की खबरें जन मानस को विचलित कर रही हैं लेकिन हमारी राज्य तथा केन्द्र की सरकार को इन नवयुवकों को असामयिक मौतों से कोई सरोकार नहीं है