ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
ज़ख़्म* जब तक खिला नहीं होता।
दिल का जंगल हरा नहीं होता।।
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आप होते रहें ज़माने के।
हर कोई आपका नहीं होता।।
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डूबना भी तो पार उतरना है।
दिल की दुनिया में क्या नहीं होता।।
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सारे बंदे* ख़ुदा के होते हैं।
कोई बंदा ख़ुदा नहीं होता।।
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ख़ुद के बारे में सोचना छोड़ो।
इसमें सबका भला नहीं होता।।
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उसकी इंसानियत* नहीं मरती।
वो अगर देवता नहीं होता।।
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डर के बाइस* दुआऍं मत माॅंगो।
बुज़दिलों का ख़ुदा नहीं होता।।
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चेहरे होते हैं सब के पास “अनवर”।
सबके पास आईना नहीं होता।।
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ज़ख़्म* घाव,
बंदे* भक्त,
इंसानियत* मानवता,
बाइस*वजह,
*शकूर अनवर
9460851271
बहुत खूब