
-हेमा पांडेय-

एक शाम ढली ,
एक चाँद खिला,
नदी ने भी दी,
अवाज हल्के से,
भोरअपने संग लाई,
कुछ महकते फूल,
सच,कुदरत के साथ है,
कितनी प्यारी जुगलबंदी।
भीना सा रिस्ता,जो
भरता है खूबसूरत रंगों से।
ताजा कर देता है
जिंदगी का हर पल।
सोचिये, न होता चाँद
तो कैसे लिखी जाती गजल,
जो रात न होती तो
नींद कहाँ से आती
भोर ही तो भर गई है
हर खाली कोना,,,,,,
और नदी कहती है
मत रुकना,चलते
ही रहना हर बार,
सारी खुशीयाँ है
चन्द कदम दूर,
घाट के उस पार।।
-हेमा पांडेय
(कवयित्री एवं मोटीवेशनल स्पीकर)
Advertisement
चांद ने आदि काल से भारत और पाकिस्तान के कवि और शायरों को गीत और गज़ल लिखने की प्रेरणा दी है।
चांद को देख कर ही नायिका कहती है:
चांद फिर निकला, मगर तुम ना आए,
जला यूं मेरा दिल…करूं क्या मैं हाए….